पूर्वजन्म में जातक ने जैसे कर्म किये होते हैं, अपने उन्ही कर्मों के आधार पर वह पृथ्वी पर नया जन्म लेता है। उसी के आधार पर भगवान उसे परिवार व सगे सम्बन्धी देता है। जातक अपने पूर्व जन्म के कर्मों की पोटली लेकर ही यह जन्म प्राप्त करता है, लेकिन इस जन्म में किये जाने वाले कर्मों से वह अपने भविष्य को सुधार सकता है।
ऐसे जानें अपना भविष्य:
# यदि जातक की जन्मपत्रिका में बृहस्पति लग्न में स्थित हो तो जातक का जन्म किसी के आशीर्वाद या श्राप फलस्वरूप हुआ होता है और जातक को उसी के अनुसार सुख-दुःख प्राप्त होते हैं।
# यदि कुंडली में बृहस्पति ग्रह द्वितीय या अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक पूर्वजन्म में संत महात्मा रहा होता है। वर्तमान में यह धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनका जन्म अच्छे परिवार में होता है।
# यदि गुरु तृतीय भाव में उपस्थित हों तो जातक का जन्म किसी महिला के आशीर्वाद या श्राप के कारण हुआ होता है और यह महिला वर्तमान जन्म वाले परिवार की ही होती है।
# कुंडली में बृहस्पति ग्रह का चतुर्थ भाव में स्थित होना उसके पूर्वजन्म में इसी परिवार का होने का संकेत देता है, जो किसी उद्देश्य की पूर्ती हेतु दोबारा उसी परिवार में जन्म लेता है और अपने उद्देश्य की पूर्ति कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
# गुरु ग्रह का नवम भाव में उपस्थित होना पितरों की कृपादृष्टि उनके आशीर्वाद को दर्शाता है। ऐसे व्यक्ति इस जीवन में त्याग व ब्रह्म ज्ञान की प्रवृत्ति रखता है तथा भाग्यशाली होता है।
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# जन्मपत्रिका में गुरु का दशम भाव में स्थित होना पूर्व में धार्मिक विचारों वाला होना बतलाता है। इस जन्म में वह समाज सुधारक का कार्य करता है। वह उपदेशक होता है, लेकिन पूजा-पाठ का दिखावा नहीं करता।
# गुरु यदि पंचम या एकादश भाव में उपस्थित हो तो जातक पूर्व जन्म में तंत्र-मंत्र एवं गुप्त विद्या का जानकार होता है। जिसके कारण इस जन्म में उसे मानसिक अशांति बनी रहती है।
# बृहस्पति का दशम भाव में उपस्थित होना जातक का जन्म गुरु का ऋण चुकाने के उद्देश्य से होता है। वह धार्मिकता से जीवन जीता है तथा उसके निवास के आसपास मंदिर आदि होता है।