पेज 3, चांदनी बार, फैशन और ट्रैफिक सिग्नल जैसी कई फिल्में बनाकर नेशनल अवार्ड जीत चुके डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने एक बार फिर से एक अलग मुद्दा उठाया है. इस बार उन्होंने इमरजेंसी के दौर पर वार किया है. 1975 से 1977 के बीच भारत में लागू की गई इमरजेंसी की पृष्ठिभूमि में क्या-क्या हुआ, इसी पर को लेकर उन्होंने इंदु सरकार बनाई है.बांधने वाली कहानी
फिल्म की कहानी 27 जून 1975 से शुरू होती है जब देश में इमरजेंसी लगाई गई थी. उसी दौरान सरकार के महकमे में सुकून था और सरकारी लोगों में नवीन सरकार (तोता रॉय चौधरी ) थे जो कि चीफ (नील नितिन मुकेश) के अंतर्गत आने वाले मिनिस्टर के सलाहकार थे. नवीन ने इंदु (कीर्ति कुल्हारी) से विवाह किया था.
फिर इमरजेंसी लागू होती है और इसी दौरान ही कुछ ऐसा हादसा होता है जिसकी वजह से इंदु अपने पति को छोड़कर देशहित के लिए आगे निकल जाती है. बहुत सारे उतार चढ़ाव के बीच अंतत इमरजेंसी को खत्म होते दिखाया गया है और इसी के साथ ही कई सवाल भी फिल्म छोड़ गई है.
जानिए आखिर फिल्म को क्यों देख सकते हैं –
– इमरजेंसी के दौरान नसबंदी और मीडियाबंदी के साथ साथ बाकी कई तरह के मुद्दें पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है.
– फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले , संवाद , सिनेमैटोग्राफी के साथ साथ बैकड्रॉप भी कमाल का है.
– मधुर का कैमरा वर्क काफी उम्दा है और जिसे देखकर कह सकते हैं की एक बार फिर से मधुर की वापसी हो चुकी है, जिस तरह के सिनेमा के लिए वो जाने जाते हैं.
– 70 के दशक की कई बारीकियों जैसे शोले फिल्म की रिलीज, साधना या हेलेन का हेयर कट इत्यादि पर विशेष ध्यान दिया गया है.
– अभिनेत्री कीर्ति कुल्हाड़ी ने बहुत ही बेहतरीन और उम्दा अभिनय किया है और एक तरह से नेशनल अवार्ड विनिंग परफॉरमेंस दी है. वहीँ तोता रॉय चौधरी और नील नितिन मुकेश ने भी अच्छा काम किया है.
-फिल्म का संगीत भी कमाल का है. एक तरफ चढ़ता सूरज वाली कव्वाली तो दूसरी तरफ मोनाली ठाकुर की आवाज में ‘ये आवाज है’ गीत पूरी फिल्म में बैकग्राउंड में आता ही आता है. ये अच्छा पिरोया गया है.