वाशिंगटन. अमेरिका (US) में कोरोना संक्रमण (Coronavirus) के मामलों में एक बार फिर तेजी दर्ज की जा रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के पर्सनल अटॉर्नी रूडी गुलियानी ( Rudy Giuliani) संक्रमित मिले हैं. ट्रंप ने रविवार को ट्वीट कर बताया कि 76 साल के गुलयानी को जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है, वे न्यूयॉर्क सिटी के पूर्व मेयर भी हैं. उधर फाइजर के वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) के इस्तेमाल की अनुमति मांगने के बाद से ही अमेरिका में ये बहस छिड़ गयी है कि आखिर वैक्सीन पहले किन लोगों को दी जाए.
फाइजर वैक्सीन को अनुमति देने के मामले पर अमेरिका फिलहाल विचार कर रहा है. इस बीच देश में इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है कि टीका लगाने में प्राथमिकता किसे मिले. अमेरिका ने वैक्सीन के लिए अब तक जितने करार किए हैं, उसके हिसाब से अभियान चले तो पूरे देश का टीकाकरण जुलाई-अगस्त तक हो पाएगा. सभी को शुरुआत में टीका लगना संभव नहीं है. इसी के मद्देनजर पहले किसे वाली बहस शुरू हुई है. इसमें बुजुर्गों और गंभीर बीमारी झेल रहे लोगों के पक्ष में तर्क है कि संक्रमित होने पर इनकी मृत्यु की आशंका ज्यादा होती है. वहीं, अतिआवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों (एसेंशियल वर्कर्स) के पक्ष में कहा जा रहा है कि वे सबसे ज्यादा खतरा झेल रहे हैं.
आखिर किसे पहले मिले कोरोना का टीका?
वाशिंगटन पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक कोरोना के कारण बढ़ी आर्थिक असमानता पर ध्यान देने की मांग भी हो रही है. गरीब और अश्वेत लोगों पर इस महामारी की मार ज्यादा पड़ी है.ऐसे में ये भी कहा जा रहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके को पहले मौका मिलना चाहिए. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के पूर्व कमिश्नर डॉ. स्कॉट गोटिलेब ने कहा, ‘अगर आपका लक्ष्य मानव जीवन की कम से कम क्षति है तो सबसे पहले बुजुर्ग लोगों को टीका लगना चाहिए, लेकिन अगर वायरस के प्रसार पर रोक लगानी है तो पहले एसेंशियल वर्कर्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.’ हालांकि अमेरिका में एसेंशियल वर्कर्स की जो परिभाषा है, उसके मुताबिक 70 फीसदी अमेरिकी कामगार इसी श्रेणी में आते हैं. इनमें किराना दुकान पर बही-खाता संभालने वाले से लेकर परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर तक सभी कामगार शामिल हैं.
इस हिसाब से अगर एसेंशियल वर्कर्स को टीकाकरण में प्राथमिकता दी जाती है तो अमेरिका को पहले ही चरण में देश की करीब आधी आबादी को टीका लगाना पड़ेगा. व्यावहारिक रूप से यह एक मुश्किल काम है. संभवत: यही कारण है कि देश में एक तबके ने अब यह मांग करना शुरू कर दिया है कि टीकाकरण के लिए एसेंशियल वर्कर्स की नई सूची बनाई जाए या फिर एसेंशियल वर्कर्स की परिभाषा को बदल दिया जाए. न्यूयॉर्क टाइम्स के एक सर्वे के मुताबिक देश की 70% आबादी को टीका लगने तक मास्क और सामाजिक दूरी जैसी सावधानियां अपनानी होंगी लेकिन सिर्फ सिर्फ 30% ने कहा कि वे अपनी आदतों में बदलाव के लिए तैयार हैं. बहस का एक मसला यह भी है कि शिक्षकों को एसेंशियल वर्कर माना जाए या नहीं. कोरोनाकाल में स्कूल बंद होने से शिक्षक घर से ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं. इसीलिए एक तबके का मानना है कि उन्हें एसेंशियल वर्कर क्यों माना जाए.