यदि शनि देव को करना है प्रसन्न, तो जरूर जानें ये कथा

यदि शनि देव को करना है प्रसन्न, तो जरूर जानें ये कथा

ज्योतिष शास्त्र: ज्योतिष शास्त्र मे शनि को सभी ग्रहों में न्यायाधीश की उपाधि दी गई है. शनि के बारे में कहा जाता है कि शनि देव व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर ही फल प्रदान करते हैं. व्यक्ति जब बुरे कर्म करता है तो शनि उसे उसी प्रकार से फल प्रदान करते हैं. शनि व्यक्ति को दंडित करने का भी कार्य करते हंै. इसलिए व्यक्ति को हमेशा गलत कार्यों को करने से बचना चाहिए. शनि इन कार्यों को करने से बहुत नाराज होते हैं और बुरा फल प्रदान करते हैं.

कमजोर व्यक्तियों को न सताएं

शनि उन लोगों को दंड अवश्य देते हैं जो कमजोर वर्गों के लोगों को सताते हैं. उनका शोषण करते हैं. शनि ऐसे लोगों को कभी माफ नहीं करते हैं और शनि की महादशा, शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या के दौरान दंडित करने का कार्य करते हैं.

शनि की ढैय्या, शनि की साढ़ेसाती और शनि की महादशा का फल

शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती और महादशा जब आरंभ होती है तो शनि अशुभ फल देना आरंभ कर देते हैं. शनि के प्रकोप से कोई भी नहीं बच पाता है. जीवन में शनि के दंड को स्वीकार करना ही पड़ता है. शनि की जब अशुभ होते हैं तो धन हानि, रोग, संबंध विच्छेद, विवाद, अपयश और भटकाव की स्थिति पैदा कर देते हैं. जिस कारण व्यक्ति मानसिक तनाव में आ जाता है और सही निर्णय नहीं ले पाता है. इस समय मिथुन, तुला, धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की दृष्टि है.

हनुमान शनि देव कथा

शनि देव ने हनुमान जी को वचन दिया है कि वे हनुमान भक्तों को कभी परेशान नहीं करेंगे. इसके पीछे एक रोचक कथा भी है. पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन हनुमान जी रामभक्ति में डूबे हुए थे. तभी वहां से शनि देव का गुजरना हुआ. शनि देव को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था. शनि देव हनुमान जी के पास पहुुंचे और उन्हें ललकारने लगे.

शनि देव काफी देर तक हनुमान जी का ध्यान भंग करने की कोशिश करते रहे है. लेकिन सफलता नहीं मिली. उन्होंने फिर प्रयास किया. हनुमान जी ने काफी देर बाद अपनी आंखों को खोला और बड़ी विनम्रता से पूछा महाराज! आप कौन हैं? हनुमान जी की इस को बात सुनकर शनि देव को गुस्सा आ गया. वे बोले अरे मुर्ख बन्दर. मैं तीनों लोकों को भयभीत करने वाला शनि हूं. आज मैं तेरी राशि में प्रवेश करने जा रहा हूं, रोक सकता है तो रोक ले. हनुमान जी ने तब भी विनम्रता को नहीं त्यागा और कहा कि शनिदेव क्रोध न करें कहीं ओर जाएं. हनुमान जी ने जैसे ही ध्यान लगाने के लिए आंखों को बंद किया वैसे ही शनि देव ने आगे बढ़कर हनुमान जी की बांह पकड़ ली और अपनी ओर खींचने लगे. हनुमान जी को लगा, जैसे उनकी बांह किसी ने दहकते अंगारों पर रख दी हो. उन्होंने एक झटके से अपनी बांह शनि देव की पकड़ से छुड़ा ली. इसके बाद शनि ने विकराल रूप धारण उनकी दूसरी बांह पकड़नी चाही तो हनुमान जी को हल्का सा क्रोध आ गया और अपनी पूंछ में शनि देव को लपेट लिया.

इसके बाद भी शनि देव नहीं माने और उन्होंने ने हनुमान जी से कहा तुम तो क्या तुम्हारे श्रीराम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. इतना सुनने के बाद तो हनुमान जी का क्रोध आ गया और पूंछ लपेट कर शनि देव को पहाड़ों पर वृक्षों पर खूब पटका और रगड़ा. इससे शनि देव का हाल बेहाल हो गया. शनि देव ने मदद के लिए कई देवी देवताओं को पुकारा लेकिन कोई भी मदद के लिए नहीं आया. अंत में शनि देव ने हनुमान जी से क्षमा मांगी और कहा कि भविष्य में वे आपकी छाया से भी दूर रहेंगे. तब हनुमान ने कहा कि वे मेरी ही छाया से नहीं बल्कि उनके भक्तों की छाया से भी दूर रहेंगे. तभी से शनि देव हनुमान भक्तों को परेशान नहीं करते हैं. इसलिए शनि को शांत करने के लिए हनुमान जी की पूजा करने की सलाह दी जाती है.

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