हरियाणा: बायोएनर्जी प्लांट को पराली बेच पर्यावरण संरक्षण कर रहे हरि सिंह

हरि सिंह ने वर्ष 2017 में पराली न जलाने की मुहिम छेड़ी थी। इसके लिए वे पंजाब में पराली से बिजली बनाने के प्लांट में गए थे। ताकि वहां से पराली की गांठें बनाने के लिए मशीन मिल जाए, लेकिन दूरी ज्यादा होने के कारण मशीन नहीं ली।

फतेहाबाद के गांव नाढोड़ी के प्रगतिशील किसान हरि सिंह गोदारा पिछले सात साल से पराली के प्रबंधन में जुटे हैं। वे 28 एकड़ में धान की खेती करते हैं, पर पराली को कभी आग नहीं लगाते। पराली की गांठें बनाकर वे दो सौ रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बायो एनर्जी प्लांट को बेच रहे हैं।

किसान हरि सिंह अब पड़ोसी किसानों को भी पराली में आग न लगाने के लिए जागरूक करते हैं। उनकी सलाह पर नाढोड़ी में अब कई किसान पराली प्रबंधन करने लगे हैं। केंद्र सरकार जब तीन कृषि कानून लेकर आई थी, तब 31 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान हरि सिंह गोदारा से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पराली प्रबंधन कर आय बढ़ाने पर चर्चा की थी।

हरि सिंह ने बताया कि पहले 85 प्रतिशत से ज्यादा लोग 1121 किस्म की धान की पैदावार लेते थे। इस किस्म के फसल अवशेषों में किसान आग भी नहीं लगाते थे, क्योंकि उसकी हाथ से कटाई होती थी। पराली को चारे के रूप में स्टॉक कर लिया जाता था। इससे पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता था। 2014-15 के बाद से परमल व मुच्छल किस्म की धान की पैदावार होने लगी। इसकी पराली पशुओं के चारे में कम उपयोग होती है। इसलिए किसानों ने धान के अवशेष जलाने शुरू कर दिए।

हरि सिंह ने वर्ष 2017 में पराली न जलाने की मुहिम छेड़ी थी। इसके लिए वे पंजाब में पराली से बिजली बनाने के प्लांट में गए थे। ताकि वहां से पराली की गांठें बनाने के लिए मशीन मिल जाए, लेकिन दूरी ज्यादा होने के कारण मशीन नहीं ली। इसके बाद केंद्र सरकार ने सीआरएम योजना के तहत बेलर मशीन सब्सिडी पर दी। इस मशीन को लेकर उन्होंने पराली की गांठें बनाना शुरू कर किया। आज क्षेत्र में 85 प्रतिशत से ज्यादा किसान धान के अवशेषों में आग नहीं लगाते। संवाद

दूसरे किसानों की पराली भी खरीदते हैं हरि सिंह
किसान हरि सिंह ने बताया कि वे अपने खेतों की पराली प्रबंधन के अलावा अन्य किसानों के खेतों की भी पराली खरीदते हैं। इससे उन्हें भी दोहरा फायदा होता है। किसान ने बताया कि नाढोड़ी क्षेत्र में किसान सतपाल धारनिया व देवा धारनिया लगभग दो हजार एकड़ में धान की खेती करते हैं। लेकिन पराली को आग लगने से बचाते हैं। दोनों किसानों के पास दस से ज्यादा बेलर मशीन व पराली की गांठ उठाने की मशीनें हैं।

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