नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के ट्रायल के बाद बेहद सकारात्मक नतीजों की खबरें आईं. कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में टीका कार्यक्रम के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने एक महिला वैज्ञानिक के नेतृत्व में शोध किए, जिन्हें अब कामयाब माना जा रहा है. सारा गिल्बर्ट, जी हां, यही उस महिला वैज्ञानिक का नाम है, जिसकी बदौलत अब यूके और दुनिया को कोविड 19 वैक्सीन मिलने की पूरी उम्मीद मिली है. एक समय विज्ञान का क्षेत्र छोड़ने का मन बना चुकीं सारा के बारे में जानने के लिए बहुत कुछ खास है.
पिछले ही दिनों बीबीसी ने साल 2020 की 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची जारी की थी और इसमें भी सारा का शुमार था. सारा वैक्सीन रिसर्च को लेकर पिछले कई महीनों से चर्चा में रही हैं. अब जबकि ट्रायलों के बाद वैक्सीन का असर 90 फीसदी तक होने की खबरें आई हैं, तब सारा के योगदान को नवाज़ा जा रहा है. जानिए सारा की कहानी और उनके जीवन के दिलचस्प मोड़.
तो शायद नहीं मिल पाती यह वैक्सीन?
जब सारा एंगिला यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी साइन्स की पढ़ाई कर रही थीं, तब उनके मन में कई क्षेत्रों का अनुभव और विचारों को हासिल करने की इच्छा थी, लेकिन जब उन्होंने हल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की पढ़ाई की, तो उन्हें बहुत समय एक ही विषय पर फोकस करना पड़ा. यह उनके मन के खिलाफ बात थी. उस वक्त सारा ने विज्ञान के क्षेत्र को अलविदा कहने तक का मन बना लिया था
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन, कोविड 19 वैक्सीन अपडेट, कोरोना वैक्सीन अपडेट, भारत की कोरोना वैक्सीनपहले भी वैक्सीन कार्यक्रमों से जुड़ी रही हैं सारा गिल्बर्ट.
जी हां, इसी साल बीबीसी के रेडियो 4 के एक कार्यक्रम में सारा ने बताया था विज्ञान से पीछा छुड़ाने का मन बनाने के बाद उन्होंने फिर सोचा और तय किया कि खुद को एक मौका और देना चाहिए क्योंकि उन्हें उस वक्त कुछ कमाई की ज़रूरत भी थी. अगर सारा ने यह निर्णय न लिया होता, तो आज वो उस वैक्सीन विकास के काम को अंजाम न दे पातीं, जिसे ट्रायलों के बाद 70 से 90 फीसदी तक असरदार माना जा रहा है.
पहले भी वैक्सीन से जुड़ी रहीं सारा-
कोरोना वैक्सीन से पहले भी सारा गिल्बर्ट का नाम मलेरिया वैक्सीन के साथ जुड़ चुका था. 1962 में यूके में जन्मीं सारा को उनके साथी पक्के इरादों वाला शख्स कहते रहे हैं. मन डगमगाने के बावजूद सारा ने डॉक्टरेट की डिग्री पाने में सफलता हासिल की थी और उसके बाद शराब उद्योग से जुड़े रिसर्च सेंटर में जॉब किया. यहां से यीस्ट यानी खमीर और इसके मानव स्वास्थ्य पर असर के बारे में उन्होंने समझा.
सारा की दिलचस्पी रिसर्च में तो थी, लेकिन वो कभी वैक्सीन विशेषज्ञ नहीं बनना चाहती थीं. 1990 के दशक में जब उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मलेरिया विषय से जुड़ा जॉब मिला, तब मलेरिया वैक्सीन की तरफ उनका सफर शुरू हुआ. सारा की कहानी अचानक आए मोड़ों से बनती हुई ज़िंदगी की कहानी है.
पेशा और परिवार-
एक पेशेवर महिला या वर्किंग वूमन के सामने सबसे बड़ी चुनौती काम और परिवार के बीच बैलेंस बनाने की रहती है. जूते के व्यापार से जुड़े पिता और अंग्रेज़ी की टीचर मां की बेटी सारा विज्ञान के क्षेत्र में आईं तो ज़िम्मेदारियों और काम से वक्त निकालना उनके लिए भी चुनौतीपूर्ण ही रहा. इसके बाद, तीन जुड़वां बच्चों की मां बनने की घटना ने सारा के जीवन में और कठिन हालात पैदा किए.
और कई उपलब्धियां सारा के नाम-
ऑक्सफोर्ड में जॉब पाने के बाद सारा ने प्रोफेशनल लाइफ में पीछे मुड़कर नहीं देखा. जेनर इंस्टिट्यूट में प्रोफेसर बनने से लेकर अपनी खुद की रिसर्च टीम बनाकर पूरी दुनिया के लिए फ्लू वैक्सीन बनाने की ज़िम्मेदारी निभाई. फिर 2014 में, इबोला वैक्सीन का ट्रायल उनके नेतृत्व में ही हुआ. इसके बाद मिडिल ईस्ट में जो वायरस Mers फैला था, उसके खिलाफ वैक्सीन विकास के लिए भी सारा ने अरब देश की यात्रा की थी.
इतनी वैक्सीनों के विकास का अनुभव रखने वाली सारा कोरोना वायरस के फैलते ही वैक्सीन निर्माण की अप्रोच अपना चुकी थीं. लेकिन, इस बार महामारी के फैलाव और घातक असर को देखते हुए उन्होंने अपनी टीम के साथ ‘क्विक अप्रोच’ अपनाई. सारा के मुताबिक उनकी रेस वायरस के खिलाफ थी, किसी और वैक्सीन निर्माण के खिलाफ नहीं. सारा साफ कहती हैं कि उनका पेशा विज्ञान का है, दौलत बनाने का नहीं.
सारा के दोस्त, साथी और परिचित उन्हें ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, शांत, मज़बूत कैरेक्टर और पक्के इरादों वाली प्रोफेशनल महिला के रूप में सारा की व्याख्या करते हैं. अब जबकि वैक्सीन दुनिया की पहुंच से बहुत कम दूरी पर रह गई हैं, तो पूरा फोकस सारा जैसी उन शख्सियतों पर है, जिनकी वजह से पूरी दुनिया राहत की सांस ले सकती है. ऐसे में सारा की एक दोस्त की मानें तो सारा को ‘लाइमलाइट’ में आना पसंद नहीं है.