हरे-भरे न्यूजीलैंड में लगी क्लाइमेट इमरजेंसी, जानें वजह

हरे-भरे न्यूजीलैंड में लगी क्लाइमेट इमरजेंसी, जानें वजह

वेलिंग्टन: न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने हाल ही में देश में क्लाइमेट इमरजेंसी लगाने की बात की है. अगर ऐसा हुआ तो पर्यावरण के मुद्दे पर हमेशा से कफी सजग रहे इस देश में साल 2050 या उससे भी कार्बन उत्सर्जन शून्य हो जाएगा. कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक पहुंचाने का टारगेट रखने वाला ये दुनिया का पहला देश होगा.

अक्टूबर में न्यूजीलैंड के आम चुनाव में प्रधानमंत्री आर्डर्न की लेबर पार्टी ने दूसरी बार शानदार जीत हासिल की. विभिन्न मुद्दों पर मजबूत राय रखने और मानवाधिकार में काफी सक्रिय रही आर्डर्न ने इस बार शपथ लेते ही सबसे पहले ग्लोबल वॉर्मिंग की बात की. साथ ही साथ संसद ने जीरो कार्बन एक्ट Zero Carbon Act पारित किया. इसके साथ ही अगले एक सप्ताह के भीतर देश में क्लाइमेट इमरजेंसी का एलान हो सकता है.

क्या है क्लाइमेट इमरजेंसी-

जलवायु आपातकाल एक ऑनलाइन पिटीशन है, जिसकी शुरुआत पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस न्यूजीलैंड ने की. संस्था ने सरकार से अपील की कि वो देश में इस तरह का आपातकाल घोषित करें. असल में बेहद साफ-सुथरे और हरे-भरे इस देश में हाल के सालों में कई बदलाव दिखे.

साल 2019 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने क्लाइमेट इमरजेंसी की साल का सबसे बड़ा शब्द माना

मौसम पहले से ज्यादा एक्सट्रीम पर दिखने लगा है. साथ ही साथ जंगली जानवरों की कई प्रजातियां तेजी से घट रही हैं. यहां तक कि इसका असर समुद्र की वनस्पति और जीव-जंतुओं पर भी हो रहा है. यही वजह है कि पर्यावरणीय संस्था लगातार इस बारे में जागरुकता के लिए सरकार से पहले करने की अपील कर रही थी.

साल 2019 में खुद ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने क्लाइमेट इमरजेंसी की साल का सबसे बड़ा शब्द माना. दूसरे आपातकाल की तरह क्लाइमेट इमरजेंसी भी एक तरह का आपातकाल है, जिसमें तुरंत एक्शन लेने की जरूरत होती है. ऐसा न होने पर ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या और भयंकर होकर सामने आएगी.

वैसे न्यूजीलैंड से पहले से साल 2019 में ही कई देशों ने अपने यहां क्लाइमेट इमरजेंसी का एलान कर दिया था. इनमें ब्रिटेन, पुर्तगाल, कनाडा, फ्रांस और जापान भी शामिल हैं. वहीं अमेरिका अब तक इसका हिस्सा नहीं बना है. बल्कि ये माना जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन के दौरान जलवायु परिवर्तन पर काफी लापरवाही दिखाई गई.

कार्बन उत्सर्जन की देखें तो चीन दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश है

वॉक्स में छपी एक रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से बात की गई है. साथ ही इस बात का जिक्र है कि ट्रंप का ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेंट चेंज पर कैसा रवैया रहा है. एक अमेरिकन थिंक टैंक थर्ड वे के कार्यकर्ता जोश फ्रीड कहते हैं कि हालात पहले से खराब हैं और ट्रंप की नीतियों ने इसे और बिगाड़ दिया.

ट्रंप ने साल 2019 में आधिकारिक तौर पर पेरिस समझौता तोड़ दिया. ये समझौता ग्लोबल पर्यावरण से जुड़ा हुआ था. इतना ही नहीं, समझौता तोड़ते हुए ट्रंप ने दूसरे देशों को आरोपों के घेरे में भी खड़ा कर दिया. उनका कहना है कि भारत, रूस और चीन तीनों समझौते के तहत काम नहीं कर रहे हैं और अमेरिका इनपर अपना समय और धन लगा रहा है. बता दें कि दूसरे देशों को क्लाइमेट चेंज रोकने के लिए काम करने को अमेरिका ने काफी सारी फंडिंग की थी लेकिन अपने मुताबिक काम न दिखने पर ट्रंप को गुस्सा आ गया. नतीजा, अमेरिका अब कार्बन उत्सर्जन में दूसरे नंबर पर खड़ा है.

कार्बन उत्सर्जन/फुटप्रिंट यानी किसी एक संस्था या व्यक्ति द्वारा की गई कुल कार्बन उत्सर्जन की मात्रा है. कार्बन उत्सर्जन की देखें तो चीन दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश है. ग्लोबल कार्बन एटलस के डाटा के मुताबिक एक साल में चीन 10.06 अरब मैट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन करता है. इसके बाद अमेरिका है, जो सालाना 5.41 अरब मैट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करता है. इसके बाद क्रमशः भारत, रूस और जापान हैं.

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