नेपीता। भारत, ताइवान और अमेरिका के बीच तेजी से बढ़ रहे संबंधों से चीन चिंतित है। वह इसे हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ रहे प्रभाव का जवाब मान रहा है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के चीन-भारत संबंधों पर आए लेख में कहा गया है कि ताइवान का मसला भारत के लिए एक कार्ड की तरह नहीं है, जिसे वह चीन के साथ चल रहे अपने सीमा विवाद को निपटाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
ग्लोबल टाइम्स में गीदड़भभकी दी-
अखबार लिखता है कि भारत वन चाइना पॉलिसी (चीन की एकजुटता की नीति) का समर्थन करता है और ताइवान की आजादी चाहने वाली ताकतों का इसलिए समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि चीन ने वादा कर रखा है कि वह भारत की अलगाववादी ताकतों का समर्थन नहीं करेगा। भारत और ताइवान के द्विपक्षीय संबंधों के मजबूत होने की चर्चा पर लिखा गया है कि भारत अगर ताइवान कार्ड खेलने की कोशिश करेगा तो चीन भी भारत के अलगाववादियों के समर्थन की चाल चल सकता है।
इसलिए डरा ड्रैगन-
लेख में यह भी कहा गया है कि भारत अगर ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करता है तो चीन भी भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलगाववादियों का समर्थन करने का फैसला ले सकता है। सिक्किम के भारत में विलय पर भी सवाल खड़े कर सकता है। लेकिन विशेषज्ञ ग्लोबल टाइम्स के इस लेख को चीन की चिंता को प्रतिबिंबित करने वाला मानते हैं।
हांगकांग और तिब्बत की आजादी का खुलेगा रास्ता-
म्यांमार के अखबार इररावड्डी ने एक अन्य लेख में ताइवान मसले को चीन के लिए बहुत ज्यादा संवेदनशील बताया है। कहा है कि ताइवान यदि स्वतंत्र अस्तित्व में आ गया तो हांगकांग और तिब्बत की आजादी का रास्ता भी खुल जाएगा। ताइवान की आजादी चीन के महाशक्ति बनने के सपने पर ग्रहण की तरह होगी। अक्टूबर में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के वाणिज्य मंत्रियों ने बैठक कर चीन से इतर नए आपूर्ति मार्ग पर विचार किया है।