बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में बीते साल 6-7 जून को ऑपरेशन के बाद चौबीस घंटे के भीतर नौ बच्चों की मौत कैसे हुई और इनका कसूरवार कौन हैं? पुलिस, बीएचयू प्रशासन और जिला प्रशासन की समिति और इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर गठित एसआईटी नौ महीने बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है।
इस बीच जन सूचना अधिकार (आरटीआई) से सनसनीखेज जानकारियां भी सामने आई हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार भर्ती मरीजों को दवा के नाम पर जो कुछ भी दिया गया, वह औषधि की श्रेणी में ही नहीं था।
जिस कंपनी के नाम से जीवन रक्षक गैस की सप्लाई की जा रही थी, उसका लाइसेंस रद्द किया जा चुका था और वह दो साल से बंद चल रही थी। सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ओपी उपाध्याय ने उस समय तीन मौतों की पुष्टि करते हुए इसका कारण बेहोशी के लिए लगाए जाने वाले इंजेक्शन आईसोफ्लोरेने की गुणवत्ता सही न होने और ओवरडोज की आशंका जताई थी।
इसके अलावा नाइट्रस ऑक्साइड गैस में गड़बड़ी की आशंका के कारण उसे सील करा दिया गया था। समूचे घटनाक्रम को लेकर हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में बीएचयू अस्पताल प्रशासन को कसूरवार ठहराया गया है। इस पर निर्णय आना बाकी है।
वहीं, घटना को लेकर हरिकेश बहादुर सिंह ने आरटीआई के माध्यम से जो जानकारी सामने लाई है, उसके अनुसार मामले में अस्पताल प्रशासन से लेकर पुलिस तक ने हद दर्जे की लापरवाही बरती।
लंका पुलिस ने दो डॉक्टरों और अन्य अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जबकि दवा सप्लाई करने वाली कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। हरिकेश का कहना है कि पुलिस, जिला प्रशासन और बीएचयू प्रशासन की फैक्ट फाइडिंग कमेटी कसूरवारों के गुनाहों की लीपापोती करने में लगे हुए हैं।
इन लोगों का यह कहना है
सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ओपी उपाध्याय का कहना है कि हाईकोर्ट ने जो जांच रिपोर्ट मांगी थी, उसे दिया जा चुका है। विश्वविद्यालय स्तर पर गठित जांच कमेटी की जांच भी पूरी हो चुकी है। कोर्ट के आदेश के बाद आगे की कार्रवाई हो चुकी है। इतना जरूर है कि तकनीकी खामियों की वजह से तीन मरीजों की मौत हुई थी। नोएडा से आई नाइट्रस आक्साइड की रिपोर्ट में उसे सही पाया गया था।
औषधि अनुज्ञापन एवं नियंत्रण अधिकारी एके जैन ने रिपोर्ट में कहा है कि उनकी टीम ने मरीजों की मौत का स्वत: संज्ञान लेकर अस्पताल का निरीक्षण किया था। अस्पताल में उपलब्ध दवाओं की जांच कर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने पाया कि इलाज में नॉन फार्माकोपियल ग्रेड की नाइट्र्स आक्साइड का उपयोग किया गया, जो औषधि की श्रेणी में नहीं आती है।
सीएमओ डॉ. बीवी सिंह ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को दी गई रिपोर्ट में कहा कि उनकी ओर से गठित जांच समिति के पास कोई नया तथ्य सामने नहीं आया। बताया कि किसी भी मृतक के शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था। ऐसे में मृत्यु के कारणों के संबंध में कोई स्पष्ट राय व्यक्त किया जाना संभव नहीं है।
लंका इंस्पेक्टर ने बताया कि डॉ. यूएस द्विवेदी, डॉ. एसके खन्ना सहित अन्य अज्ञात के खिलाफ गैर इरादतन हत्या सहित अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया था। चूंकि मामले की जांच हाईकोर्ट के निर्देश पर विषय विशेषज्ञों की एसआईटी कर रही है। इसलिए एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद ही पुलिस अपनी विवेचना आगे बढ़ाएगी।