तनाव से नहीं, मस्तिष्क में संचार असंतुलन से होता है अवसाद

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (एनआईएमएच) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि अवसाद (डिप्रेशन) या चिंता (एंग्जायटी) केवल बाहरी तनाव या भावनात्मक अनुभव का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे मस्तिष्क के सिग्नल ट्रांसमिशन सिस्टम में गहराई से जुड़ा न्यूरल असंतुलन जिम्मेदार है। यह शोध नेचर न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसे अब तक का सबसे सटीक न्यूरो-बायोलॉजिकल मॉडल ऑफ डिप्रेशन कहा जा रहा है।

वरिष्ठ न्यूरोसाइंटिस्ट डा. लॉरा मरे और डा. जेम्स क्रैन्डल के नेतृत्व में एनआईएमएच की शोध टीम ने 18 से 65 वर्ष के 320 प्रतिभागियों पर हाई-रिजोल्यूशन फंक्शनल एमआरआई और न्यूरोकेमिकल स्कैनिंग की मदद से अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जिन लोगों में लंबे समय से अवसाद या चिंता थी, उनके मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स और अमिगडाला के बीच सिग्नल ट्रांसमिशन कमजोर था यानी भावनाओं को नियंत्रित करने और निर्णय लेने वाले हिस्सों के बीच संचार का संतुलन बिगड़ गया था। विशेष रूप से गामा-अमीनोब्यूट्रिक एसिड (जीएबीए) और ग्लूटामेट जैसे न्यूरोट्रांसमीटरों के स्तर में असमानता मिली, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि मानसिक विकार केवल मूड या थॉट पैटर्न नहीं, बल्कि सिग्नलिंग बायोलॉजी की गड़बड़ी का परिणाम हैं।

नए उपचारों के खुलेंगे रास्ते
एनआईएमएच की रिपोर्ट बताती है कि यह खोज ब्रेन-केमिस्ट्री पर आधारित नए उपचारों का मार्ग खोल सकती है। अब पारंपरिक एंटीडिप्रेसेंट दवाओं की जगह न्यूरोमॉड्यूलेशन थेरपी पर ध्यान दिया जा रहा है। यानी मस्तिष्क के सिग्नल नेटवर्क को पुनर्संतुलित करना। इस दिशा में ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिम्युलेशन (टीएमएस) और डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (डीबीएस) जैसी तकनीकों को भविष्य के संभावित समाधान के रूप में देखा जा रहा है।

नई तकनीक को अमेरिका में ट्रायल की मंजूरी
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन(एफडीए) ने ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिम्युलेशन (टीएमएस) की एक नई वेव-गाइड तकनीक को पायलट ट्रायल के लिए मंजूरी दी है। यह तकनीक पहले की तुलना में ज्यादा सटीक तरीके से मस्तिष्क के प्रभावित हिस्सों को टार्गेट कर सकती है।

इस ट्रायल में वैज्ञानिक टीएमएस को इस तरह ट्यून करेंगे कि वह सीधे अमिगडाला–प्रीफ्रंटल कनेक्टिविटी को मजबूत करे। यानी भावनाओं और निर्णय लेने वाले हिस्सों के बीच कमजोर हो चुके सिग्नल को बेहतर बनाए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तरीका टार्गेटेड सिग्नल थेरपी का शुरुआती और बेहद महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, क्योंकि पहली बार किसी तकनीक को विशेष मस्तिष्क-नेटवर्क सुधारने के लिए इतने सटीक रूप में डिजाइन किया जा रहा है।

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