नजफगढ़ में जल निकाय की भूमि पर अतिक्रमण कर डीटीसी की ओर से बहुमंजिला बस अड्डा बनाने का आरोप लगाने वाले आवेदन पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने डीडीए को स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने उक्त आदेश तब दिया जब एक हलफनामा में कहा कि यह सारी जमीन ग्राम सभा की जोहड़ है।
वहीं, डीटीसी ने दावा किया कि डीडीए ने 1998 में यह जमीन उन्हें बस अड्डा बनाने के लिए दी थी। डीडीए ने भी कहा कि जमीन 1963 में अर्बनाइज घोषित हुई थी और 1974 में डीडीए को सौंपी गई थी। 1981 में यह जमीन डीडीए के उद्यान विभाग को दे दी थी।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने डीडीए की ओर से दायर हलफनामे का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि डीडीए के अनुसार, 31 मई 2016 को यह जोहड़ (1.36 एकड़) और आसपास के कई छोटे पार्क दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को सौंप दिए गए थे। ऐसे में इस जलाशय की देखरेख व संरक्षण की जिम्मेदारी उसकी है।
वहीं, जिलाधिकारी ने अपने हलफनामों में फिर दोहराया कि ये खसरा नंबर वास्तव में जोहड़ हैं। इससे पहले भी उत्तर-पश्चिम जिलाधिकारी ने खुद डीटीसी की ओर से जल निकाय की भूमि पर अतिक्रमण कर बस टर्मिनल बनाने की पुष्टि की थी। पिछली सुनवाई पर एनजीटी ने डीटीसी को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
वन विभाग से डीटीसी ने नहीं ली एनओसी
जिलाधिकारी ने अदालत को बताया था कि डीटीसी ने निर्माण गतिविधि के लिए वन विभाग से किसी भी औपचारिक भू- उपयोग में परिवर्तन (सीएलयू) या एनओसी नहीं ली है। संबंधित भूमि नमभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 के अनुसार पहचान की गई नमभूमि के दायरे में आती है और यह ग्रामसभा की जमीन है। वहीं, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अपने जवाब में कहा कि जल निकाय 31 मई, 2016 को तत्कालीन दक्षिण दिल्ली नगर निगम (अब एमसीडी) को सौंप दिया गया था।
डीटीसी का पक्ष : अदालत में हलफनामा दाखिल कर डीटीसी ने कहा था कि संबंधित जल निकाय या तो डीडीए या फिर एमसीडी के स्वामित्व में है। हालांकि, नजफगढ़ बस टर्मिनल किसी भी अधिसूचित जल निकाय पर नहीं है। नजफगढ़ बस टर्मिनल के सबसे नजदीकी जल निकाय टर्मिनल के पीछे है और एमसीडी के स्वामित्व में है।