पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने भूतपूर्व सैनिक के लिए विकलांगता पेंशन के संबंध में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के निर्णय को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने कहा कि सेना की सेवा के कारण विकलांगता होने पर सैनिक न्यूनतम सेवा अवधि पूरी नहीं होने पर भी पेंशन का हकदार है।
सुखदेव सिंह 1972 में भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट में शामिल हुए और 24 साल तक सेवा देने के बाद 1996 में रिटायर हो गए। 1999 में उन्हें 10 साल की प्रारंभिक अवधि के लिए डिफेंस सिक्योरिटी कोर्प्स में सिपाही के रूप में फिर से भर्ती किया गया। इस दूसरे कार्यकाल के दौरान उन्हें प्राथमिक उच्च रक्तचाप, मोटापा सहित कई विकलांगताएं हुईं। ये उनकी सेवा के कारण थीं और इसके चलते मेडिकल बोर्ड की ओर से उन्हें 50 प्रतिशत विकलांगता के आधार पर 2009 में सेवामुक्त कर दिया गया। उन्होंने विकलांगता पेंशन के लिए आवेदन किया, लेकिन उनका दावा खारिज कर दिया गया।
इसके बाद उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण से संपर्क किया। न्यायाधिकरण ने दावे को स्वीकार कर लिया। भारत सरकार ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ओम प्रकाश गुलेरिया मामले में यह स्पष्ट किया था कि सेवा के दौरान हुई विकलांगता के लिए पेंशन न्यूनतम सेवा अवधि पूरी न होने पर भी दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि पूर्व सैनिक विकलांगता के कारण न्यूनतम सेवा अवधि पूरी नहीं कर सका, विकलांगता सेवा के दौरान या सेवा के कारण हुई थी। ऐसे में उसे पेंशन से महरूम नहीं किया जा सकता। इन टिप्पणियों के साथ ही हाईकोर्ट ने भारत सरकार की अपील को खारिज कर दिया।