कब और कैसे लगता है कुलिक कालसर्प दोष?

राहु और केतु मायावी ग्रह हैं। इन दोनों ग्रहों के लग्न में गोचर करने से जातक के स्वभाव में बदलाव देखने को मिलता है। इससे जातक को कई बार लाभ मिलता है तो कई बार हानि का भी सामना करना पड़ता है। भगवान शिव की पूजा करने से राहु और केतु का प्रभाव (Anant Kaal Sarp Yog) समाप्त हो जाता है।

मायावी ग्रह राहु और केतु एक राशि में डेढ़ साल तक रहते हैं। इसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं। वर्तमान समय में राहु मीन राशि में विराजमान हैं और अगले साल 18 मई को मायावी ग्रह राशि परिवर्तन करेंगे। इस दिन राहु मीन राशि से निकलकर कुंभ राशि में गोचर करेंगे। वहीं, केतु कन्या राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। राहु और केतु के राशि परिवर्तन से मीन और सिंह राशि के जातकों को मायावी ग्रह से मुक्ति मिलेगी। लेकिन क्या आपको पता है कि कुंडली में कब कुलिक कालसर्प योग लगता है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

कुलिक कालसर्प दोष के प्रभाव
कालसर्प दोष से पीड़ित जातक को सफलता मिलने में काफी समय लगता है। कई अवसर पर मेहनत के अनुसार फल भी नहीं मिलता है। जातक मानसिक तनाव से पीड़ित रहता है। मन में नकारात्मक विचार चलता रहता है। साथ ही जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

कब बनता है कुलिक कालसर्प दोष ?
ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में राहु के दूसरे भाव में रहने और केतु के आठवें भाव में रहने से कुलिक कालसर्प दोष लगता है। इस दौरान सभी शुभ और अशुभ ग्रह दोनों मायावी ग्रह के मध्य रहते हैं। इस स्थिति में कुलिक कालसर्प दोष लगता है। आसान शब्दों में कहें तो कुंडली में राहु के दूसरे और केतु के आठवें भाव में रहने के साथ सभी शुभ और अशुभ ग्रह मायावी ग्रह के मध्य में रहने पर जातक कुलिक कालसर्प दोष से पीड़ित होता है। कुलिक कालसर्प दोष का निवारण अनिवार्य है।

उपाय
ज्योतिषियों का मत है कि कुलिक कालसर्प दोष लगने पर निवारण ही विकल्प है। वहीं, सामान्य उपाय कर इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। अमावस्या तिथि पर निवारण कराना उत्तम होता है। कुलिक कालसर्प दोष के प्रभाव को कम करने के लिए रोजाना स्नान-ध्यान के बाद भगवान शिव की पूजा करें। इस समय देवों के देव महादेव का अभिषेक अवश्य करें। इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। अन्न, जल, धन और वस्त्र का दान करें।

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