केदारनाथ: सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक घोड़ा-खच्चर से सामान ढुलान का भाड़ा 500 से 1000 रुपये

सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक घोड़ा-खच्चर से सामान ढुलान का भाड़ा 500 से 1000 रुपये तक देना पड़ रहा है। ऐसे में स्थानीय ग्रामीणों व व्यापारियों को खासी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। अतिवृष्टि के बाद से राजमार्ग भी दुरुस्त नहीं हो सका है।

आपदा को 50 दिन बीत गए हैं, लेकिन अभी तक रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक दुरुस्त नहीं हो पाया है। जिस कारण बाबा केदार के भक्तों को धाम तक पहुंचने के लिए 21 किमी पैदल दूरी तय करनी पड़ रही है। गौरीकुंड के व्यापारियों व स्थानीय लोगों को भी अपनी दुकान व घरों तक घोड़ा-खच्चर से जरूरी सामग्री पहुंचाने के लिए 500 से एक हजार रुपये भाड़ा देना पड़ रहा है। उन्होंने 30 सितंबर तक हाईवे के दुरुस्त नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।

बीते 31 जुलाई को आई आपदा से केदारनाथ पैदल मार्ग सहित रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे सोनप्रयाग से गौरीकुंड के बीच व्यापक रूप से प्रभावित हो गया था। यहां भूस्खलन से सड़क चार स्थानों पर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है, जिस कारण वाहनों का संचालन नहीं हो पा रहा है।

इन हालातों में केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को सोनप्रयाग से ही पैदल मार्ग से धाम जाना पड़ रहा है। जिस कारण उन्हें 21 किमी पैदल दूरी तय करनी पड़ रही है। वहीं, गौरीकुंड के ग्रामीणों व व्यापारियों को अपने घरों व दुकानों के लिए राशन, सब्जी और अन्य जरूरी सामग्री घोड़ा-खच्चर से पहुंचानी पड़ रही है।

व्यापारिक गतिविधियां भी चौपट
स्थिति यह है कि घोड़ा-खच्चर से एक चक्कर में 50 किलो सामान ढुलान का 500 रुपये से 1000 रुपये तक भाड़ा देना पड़ रहा है। जिससे लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही है। गौरीकुंड के पूर्व ग्राम प्रधान राकेश गोस्वामी, व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष अरविंद गोस्वामी, अखिलेश गोस्वामी, गौरी शंकर आदि का कहना है कि आपदा के 50 दिन बीत जाने के बाद भी गौरीकुंड तक यातायात का संचालन नहीं हो पाया है। इन हालातों में बीमार, गर्भवती और अन्य जरूरतमंद को अस्पताल पहुंचाने में भी खासी दिक्कत हो रही है। साथ ही व्यापारिक गतिविधियां भी चौपट हो गई हैं। एनएच को कई बार अवगत कराने पर भी कार्य में तेजी नहीं लाई जा रही है।

मलबे से पटा तप्तकुंड क्षेत्र
अतिवृष्टि से प्रभावित तप्तकुंड क्षेत्र मलबे से पटा है। यहां अभी तक साफ-सफाई के कोई प्रयास नहीं हो पाए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि शासन, प्रशासन द्वारा गौरीकुंड की सुध नहीं ली जा रही है। जून 2013 की आपदा के बाद से केदारनाथ यात्रा के इस अहम पड़ाव को भुला दिया गया है। उन्होंने तप्तकुंड में जमा मलबे की सफाई कर संरक्षित करने की मांग की है।

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