बंग्लादेश के साथ गंगा जल संधि को लेकर किए गए फैसले पर केंद्र सरकार ने कहा है कि उसने सभी पक्षों के साथ विमर्श के साथ ही निर्णय लिया है। इससे पहले ममता सरकार ने आरोप लगाया था कि सरकार ने बिना उनसे बातचीत किए बिना फैसला किया है। सरकारी सूत्रों ने इसे लेकर एक वर्ष के विमर्शों का पूरा लेखा-जोखा दिया है।
केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से लगाए गये इस आरोप को निराधार बताया है कि भारत व बांग्लादेश के बीच गंगा जल संधि को वर्ष 2026 से आगे बढ़ाने के फैसले को लेकर राज्य सरकार के साथ कोई विमर्श नहीं किया गया है।
सरकारी सूत्रों ने इस बारे में पिछले एक वर्ष के भीतर इस बारे में पश्चिम बंगाल और बिहार के साथ किये गये विमर्शों का पूरा लेखा-जोखा दिया है। इसमें बताया गया है कि जल शक्ति मंत्रालय में जुलाई, 2023 में एक आंतरिक समिति का गठन किया था, ताकि संधि को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर सभी पक्षों के साथ विचार किया जाए। इसके बाद अगस्त, 2023 में पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस समिति के लिए अपने सदस्य को भी मनोनीत कर दिया था।
बैठकों में बंगाल ने भी लिया हिस्सा
समिति की चार बैठकें हुई। वर्ष 2023 के अगस्त और अक्टूबर महीने में और वर्ष 2024 के अप्रैल व मई महीने में। 14 जून, 2024 को इसने अपनी रिपोर्ट उच्च स्तर पर सौंप दी। समिति की तीन बैठकों में पश्चिम बंगाल के संयुक्त सचिव या मुख्य अभियंता ने हिस्सा लिया। इस बीच 05 अप्रैल, 2024 को राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखा कर वर्ष 2026 के बाद पश्चिम बंगाल में पेय जल व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए आवश्यक पानी की जरूरत का आकलन पेश किया।
सभी पक्षों से चर्चा के बाद लिया गया फैसला: केंद्र
इस मांग को पश्चिम बंगाल के अधिकारी ने उक्त समिति की अंतिम बैठक 21 मई, 2024 में भी उठाया। इससे यह साफ है कि जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ष 1996 में भारत और बांग्लादेश के बीच किये गये समझौते को आगे बढ़ाने को लेकर सभी पक्षों से विमर्श किया है। इसके बाद ही भारत और बांग्लदेश के बीच गंगा जल बंटवारे को आगे बढ़ाने के विषय पर एक संयुक्त तकनीकी समिति के गठन का फैसला किया गया है।
बताते चलें कि पिछले शनिवार (22 जून) को पीएम नरेद्र मोदी और पीएम शेख हसीना के बीच हुई बैठक में यह फैसला किया गया है कि गंगा जल समझौते को आगे बढ़ाने को लेकर जल्द ही तकनीकी विमर्श की शुरुआत की जाएगी।