शिव कृपा प्राप्त करने का मास है श्रावण मास

भगवन शिव देवो के देव है। इनकी आराधना करने से मनवांछित फल मिलता है। श्रावण मास एक ऐसा मास जो भोले बाबा को अत्यंत प्रिय है। वे भक्तो की भक्ति एवं आराधना से प्रसन्न होकर उचित फल प्रदान करते है।

वैसे तो हर मास पवित्र मास है लेकिन श्रावण मास में विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना की जाती है। हमारे पुराणों में कहते हैं कि “अलंकारं विष्णु: प्रिय:। जलधारा शिवं प्रिय:” अर्थात भगवान विष्णु को सजाने में आनंद है, भगवान विष्णु हमेशा सजे-धजे रहते हैं, मगर शंकर जी अभिषेक से प्रसन्न होते हैं। और शंकर जी कहाँ हैं? वे सिर्फ मंदिर में नहीं बैठे हैं! ब्रह्माण्ड व्याप्त देहाय वे सारे संसार में, सारी प्रकृति में हैं! जब इस सारे ब्रह्माण्ड में उनका शरीर है तो उनके ऊपर जल की वर्षा कैसे होगी? ब्रह्माण्ड ही करेगा, वे स्वयं ही कर पायेंगे। श्रावण के महीने में बादल बरसते हैं और इस सारी पृथ्वी का अभिषेक होता है। सब धुल जाता है और यह पृथ्वी खिल उठती है। 

श्रावण मास का अर्थ 
श्रावण माने श्रवण करना, जिस महीने में बैठ के कथाएं सुनते हैं, ईश्वर का गुणगान सुनते हैं तो हमारे भीतर तसल्ली होती है। पहले बारिश के मौसम में लोग बाहर नहीं जाते थे। सन्यासियों के लिए भी यही था। पहले साधु, संन्यासी, महात्मा, ये किसी गाँव में, किसी शहर में चार महीने(चातुर्मास में) रह जाते थे। जब चार महीने रहते तो सारे भक्त वहाँ आते उनकी बातें सुनते। जब बारिश होती है तो प्रकृति देख सब लेती है। तो श्रावण मास में आप बैठ के कथाएँ सुनें, गीत गाएं, प्रसन्न रहें, पहले लोग यही करते थे। 

शिव कौन हैं?
श्रावण मास में शिव की आराधना का विशेष महत्व है। शिव के विषय में एक बहुत सुन्दर कहानी है। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और संसार के पालनकर्ता विष्णु, इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहे थे कि ‘शिव कौन हैं?’ वे शिव को पूरी तरह जानना चाहते थे। तो ब्रह्मा ने विष्णु से कहा- “मैं उनका मस्तक ढूंढता हूँ, आप उनके चरण खोजिए। हजारों वर्षों तक भगवान विष्णु, शिव के चरणों की खोज में नीचे काफी गहराई में पहुंच गए और ब्रह्मा, शिव का मस्तक ढूंढते-ढूंढते काफी ऊपर तक पहुंच गए लेकिन वे दोनों ही असफल रहे। यहां इसका अर्थ है कि शिव का कोई आदि और अंत नही है। अंत में वे दोनों मध्य में मिले और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वे शिव को नहीं ढूंढ सकते। यहीं से शिवलिंग अस्तित्व में आया।

शिवलिंग क्या है? 
शिवलिंग अनंत शिव की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। लिंग का अर्थ है- पहचान; एक प्रतीक जिसके माध्यम से आप यह जान सकते हैं कि सत्य क्या है– वास्तविकता क्या है? जो दिखाई नहीं दे रहा है, उसे एक प्रतीक से पहचाना जा सकता है, वह है लिंग। जब एक शिशु का जन्म होता है तो लिंग के माध्यम से ही हम उसके स्त्री अथवा पुरुष होने का पता लगा सकते हैं। यही कारण है कि जननेन्द्रियों को भी लिंग कहा जाता है।
ठीक उसी तरह आप सृष्टि के रचयिता की पहचान कैसे करेंगे? ठीक वैसे ही जैसे आप स्त्री अथवा पुरूष की पहचान करते हैं। ईश्वर की पहचान करने के लिए, उनका एक प्रतीक बना कर उसका संयोजन करके- वही शिवलिंग है। शिवलिंग भगवान शिव का सबसे प्राचीन प्रतीक है। जहाँ आप निराकार से साकार की ओर बढ़ते हैं। 

रुद्रपूजा क्या है? 
यह संसार उर्जा का एक खेल है- सकारात्मक और नकारात्मक। शिव संहार करते हैं। रोग, अवसाद और उदासी के रूप में जो भी नकारात्मक ऊर्जा हमारे भीतर और आस-पास है, उसका संहार करने का सबसे आसान उपाय है- रुद्रपूजा। रुद्रपूजा करने से शान्ति, उल्लास,समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।  सारा संसार ईश्वर का रूप है और उस पर श्रावण मास में जलधारा (वर्षा) हो रही है। प्रकृति इस धरती को अभिषेक कर रही है, जल चढ़ा रही है। इसी का अनुकरण हम भी करते हैं, श्रावण में हम भी शिवलिंग के ऊपर थोड़ा सा जल चढ़ाते हैं और यह विश्वास रखते हैं कि हम ईश्वर के हैं ।

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