फ्रांस के नए राष्ट्रपति मैक्रों के सामने होंगी ये 5 बड़ी चुनौती

फ्रांस में हुए राष्ट्रपति चुनाव में एमानुएल मैक्रोन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. फ्रांस की राजनीति में अनजान शख्स माने जाने वाले 39 वर्षीय मैक्रोन देश के सबसे युवा राष्ट्रपति होंगे. जीत के साथ ही मैक्रोन के सामने कई चुनौतियां भी हैं जिनका सामना उन्हें पद संभालने के बाद करना है. उन्हें देश की आंतरिक हालात से लेकर आर्थिक, वैश्विक और आतंकवाद के खिलाफ कड़े मोर्चे पर लड़ाई लड़नी होगी ताकि जनता की उम्मीदों पर खरा उतर सकें.

फ्रांस के नए राष्ट्रपति मैक्रों के सामने होंगी ये 5 बड़ी चुनौती

संसदीय चुनाव

सबसे फौरी चुनौती आगामी संसदीय चुनावों में जनाधार को बचाए रखने की है जो कि जून में होने हैं. मैक्रोन की पार्टी के पास संसद में एक भी सीट नहीं है. चुनाव में उनकी पार्टी इन मार्श को चुनाव लड़ना होगा लेकिन अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए गठबंधन का सहारा लेना पड़ सकता है. कई राजनीतिक दलों ने सिर्फ ली पेन को हराने के लिए राष्ट्रपति चुनाव में मैक्रोन का समर्थन किया था ऐसे में क्या वह दलों दोबारा उनके साथ खड़े होंगे. संसदीय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए उन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों को भी अपनी तरफ़ करना होगा.

शरणार्थियों का मुद्दा

फ्रांस में आने वाले शरणार्थियों की संख्या कम है बावजूद इसके मैक्रोन के सामने उनकी समस्याओं को सुलझाने की चुनौती होगी. शरणार्थियों के मुद्दे ने राष्ट्रपति चुनाव में अहम भूमिका निभाई है. साल 2016 में फ्रांस में सिर्फ 85 हजार शरणार्थी आये थे लेकिन कई आतंकी हमलों के बाद धर्मनिरपेक्ष देश में मुस्लिम आबादी के साथ तनाव बढ़ गया है. साथ ही मैक्रोन नागरिकता हासिल करने के लिए फ्रैंच भाषा की अनिवार्यता का भी समर्थन कर चुके हैं.

आर्थिक सुधार

फ्रांस में सरकारी खर्च घटाना एक बड़ी चुनौती साबित होगा. सामाजिक सुरक्षा और सरकारी नौकरियों पर इसी खर्च के चलते तलवार की तरह लटक रही है. फ्रांस में 52 लाख लोग सरकारी नौकरियों में हैं जो कुल वर्कफोर्स का 20 फीसद है. ली पेन की नौकरियों में कटौती की कोई योजना नहीं थी, लेकिन मैक्रोन की नीतियां इसके समर्थन में हो सकती हैं. चुनाव के दौरान मैक्रोन ने बजट में 60 अरब यूरो की बचत करने का लक्ष्य रखा था ताकि राजकोषीय घाटे कम किया जा सके.

आतंकवाद

साल 2015 के बाद फ्रांस में हुए आतंकी हमलों में 230 लोगों की जान जा चुकी है. इन हमलों को देश की आंतरिक सुरक्षा में सेंध माना गया. आतंकवाद और सुरक्षा के मामले में मैक्रोन ने सख्त रवैया अपनाने की वकालत की है. फ्रांस के सैकड़ों लोग सीरिया और इराक में लड़ने गये थे और अब लौट आये हैं. उनसे निपटना सरकार की चुनौती होगी. निर्वाचित राष्ट्रपति मैक्रोन के पास ऐसे गंभीर मामलों से निपटने का कोई अनुभव नहीं है. सेना के सर्वोच्च कमांडर होने के बाद उन्हें जल्द से जल्द ये दिखाना होगा कि इन मामलों पर भी उनकी मजबूत पकड़ है.

बेरोजगारी

फ्रांस की नई सरकार के सामने युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे. देश में बेरोजगारी का मुकाबला करने में विफलता को ही ली पेन की दक्षिणपंथी पार्टी की लोकप्रियता की मुख्य वजह माना गया. मैक्रोन ने श्रम बाजार में सुधारों की बात कही है साथ ही कमजोर कमजोर श्रम कानूनों को बदलकर रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराना उनके चुनावी एजेंडे में शामिल है. हालांकि इसके लिए उन्हें वामपंथी विरोधियों और ट्रेड यूनियन का विरोध झेलना पड़ सकता है.

 

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