प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा कि वह यह जानकारी नहीं दे सकता कि किसने विज्ञापनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों के इस्तेमाल की मंजूरी मांगी क्योंंकि इस तरह के काम में ‘गहन छानबीन’ की जरूरत पड़ती है। पीटीआई के एक संवाददाता द्वारा दायर सूचना के अधिकार आवेदन के जवाब में पीएमओ ने कहा कि इस काम में उसके संसाधनों का भी ‘अनुपातहीन रूप से’ दूसरी दिशा में इस्तेमाल होगा क्योंकि सूचना एक ‘ठोस’ रूप में उपलब्ध नहीं है। पीएमओ ने कहा, ‘सूचना के किसी भी तरह के संग्रह के लिए हर रसीद या मामले से संबंधित सभी फाइलों में कैद संचार-संवाद की गहन छानबीन की जहमत उठानी पड़ेगी।’
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि इस तरह के विस्तृत काम के लिए ‘कार्यालय के सामान्य कामकाज में लगने वाले संसाधनों का अनुपातहीन रूप से दूसरी जगह इस्तेमाल होगा और आरटीआइ अधिनियम, 2005 की धारा सात (9) के प्रावधान लागू होंगे।’ इस धारा के तहत ‘सूचना सामान्यत: उसी रूप में दी जाएगी जिसमें उसकी मांग की जाए जब तक इससे सार्वजनिक प्राधिकरण के संसाधन का अनुपातहीन रूप से दूसरी दिशा में इस्तेमाल न हो या वह सवालिया रिकार्ड की सुरक्षा के लिहाज से हानि न पहुंचाए।’पीएमओ से प्रधानमंत्री की तस्वीरों का इस्तेमाल करने के लिए कंपनियों, न्यासों एवं व्यक्तियों द्वारा मांगी गयी मंजूरी के ब्यौरे और इस तरह के अनुरोध को स्वीकारने या नामंजूर करने से संबंधित संवाद की प्रतियां मांगी गई थी। एक दूसरे आरटीआइ आवेदन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि उसके पास विज्ञापनों में मोदी की तस्वीरों के इस्तेमाल की खातिर रिलायंस जियो और पेटीएम द्वारा मांगी गई मंजूरी का कोई रिकार्ड नहीं है। पीएमओ ने कहा, ‘मांगी गई सूचना इस कार्यालय के पास मौजूद रिकार्ड में शामिल नहीं है।’
पिछले साल सितंबर में रिलायंस जियो ने अखबार के एक पूरे पन्ने पर दिए गए अपने विज्ञापन में रिलायंस जियो की 4जी सेवा मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया परियोजना को समर्पित की थी। इसके साथ मोदी की एक तस्वीर लगायी गई थी। आठ नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद पेटीएम ने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए आॅनलाइन भुगतान को बढ़ावा देते हुए अपने प्रचार के लिए एक विज्ञापन दिया था। विज्ञापन में मोदी की तस्वीर लगाई गई थी। दोनों ही मामलों ने राजनीतिक विवाद का रूप ले लिया था।