विमान लैंडिंग के मामले में भारत ने नई उड़ान भरी है। गुरुवार को एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया (एएआइ) ने इसरो के सहयोग से विमान लैंड कराने की नई तकनीक का सफल परीक्षण किया। इंडिगो एयरलाइन के विमान ने राजस्थान के किशनगढ़ स्थित हवाईअड्डे पर गगन आधारित एलपीवी तकनीक के माध्यम से विमान लैंड कराया। अमेरिका, यूरोप और जापान के बाद भारत चौथा देश है, जिसने यह तकनीक विकसित की है।
अब होगी विमानों की लैंडिंग सुरक्षित
दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित छोटे हवाईअड्डों पर खराब मौसम में हवाई जहाज की लैंडिंग कराना सबसे चुनौतीपूर्ण काम होता है। यही कारण है कि अक्सर मौसम थोड़ा सा खराब होते ही उड़ान रोकनी पड़ती है या उसे डायवर्ट करना पड़ता है। गगन आधारित एलपीवी (लोकलाइजर परफार्मेस विद वर्टिकल गाइडेंस) तकनीक के प्रयोग से यह समस्या दूर होगी और विमानों की लैंडिंग सुरक्षित होगी।
बहुत महंगी है मौजूदा तकनीक
खराब मौसम या कम दृश्यता में विमान की लैंडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली मौजूदा तकनीक आइएलएस (इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम) बहुत महंगी है। यही कारण है कि देशभर में सौ से ज्यादा एयरपोर्ट पर अभी तक मात्र 50 से कुछ ही ज्यादा रनवे पर इस सिस्टम को लगाया गया है। हर रनवे पर यह सुविधा नहीं होने के कारण ही सभी हवाईअड्डों पर देर रात या थोड़े से भी खराब मौसम में विमान लैंडिंग की अनुमति नहीं दी जाती है।
नई तकनीकी से बदल जाएगी व्यवस्था
गगन यानी जीपीएस एडेड जियो आग्मेंटेड नेविगेशन को इसरो ने विकसित किया है। यह नेविगेशन सिस्टम इसरो द्वारा लांच किए गए जीसैट-8, जीसैट-10 और जीसैट-15 सेटेलाइट के माध्यम से काम करता है। इसी गगन को आधार बनाते हुए एएआइ ने इसरो के साथ मिलकर गगन आधारित एलपीवी विकसित किया है। इसकी मदद से रनवे पर आइएलएस के बिना ही सेटेलाइट से मिले डाटा के आधार पर विमान को उतारना संभव होगा।
ऐसे काम करती है तकनीक
अभी आइएलएस के माध्यम से विमान में पायलट को रनवे की स्थिति का पता चलता है। दृश्यता कम होने पर आइएलएस के जरिये पायलट रनवे की स्थिति की विस्तृत जानकारी पाता है और उसके हिसाब से लैंडिंग का फैसला करता है। इसमें रनवे से विमान की ऊंचाई, आखिरी छोर से उसकी दूरी, उतरने के लिए जरूरी कोण आदि की जानकारी मिलती है। आइएलएस नहीं होने की स्थिति में खराब मौसम में लैंडिंग के दौरान आपात स्थिति में पायलट को अपने अनुभव के आधार पर ही फैसला लेना पड़ता है। जरा सी चूक हादसे का कारण बन सकती है। नए एलपीवी में विमान में पायलट को सेटेलाइट के माध्यम से यह सब जानकारी मिल जाएगी। इससे विमान की लैंडिंग सुरक्षित होगी।