पाकिस्तान में सियासी संकट का दौर खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद पाकिस्तान में संसदीय परंपरा को पटरी पर लाया गया और संयुक्त विपक्ष अपने मिशन में सफल रहा। आखिरकार इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और शहबाज शरीफ देश के नए प्रधानमंत्री बने। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर इमरान खान से कहां चूक हुई, जिसके कारण उनको सत्ता से हाथ धोना पड़ा। देश विदेश की मिडिया ने इस राजनीतिक घटनाक्रम को किस रूप में लिया। इमरान सत्ता से बेदखल क्यों हुए इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है। क्या इमरान खान की गलतियों के कारण उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। इसके पीछ क्या वजह रही। विशेषज्ञों की राय है कि इसके पीछे ऐसे कई कारण थे, जिस पर लोगों का ध्यान गया ही नहीं। इमरान अपनी महत्वाकांक्षा के कारण अपने कई दोस्त देशों से दुश्मनी कर बैठे जिसका असर देश पर पड़ा। वह एक अपरिपक्व राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार कर रहे थे।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि देश के आंतरिक कारणों के साथ ऐसे कई कारण हैं, जिसके कारण इमरान खान को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। उन्होंने कहा कि इमरान खान महत्वाकांक्षी नेता था। वह दुनिया में मुस्लिम नेता के रूप में उभरना चाहते थे। यही कारण है कि उन्होंने कई बार मुस्लिम ब्लाक बनाने की बात कही थी। यह बात कई मुस्लिम नेताओं को अखर रही थी और वह इमरान को कमजोर करने की साजिश में रहते थे। उन्होंने आर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन और संयुक्त राष्ट्र जिस तरह से फलस्तीनियों के मुद्दों को जोरशोर से उठाया उसको उसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। इमरान का यह कदम कहीं न कहीं अमेरिका को भी अखरा होगा।
2- पाकिस्तान मलेशिया में आयोजित कुआलालंपुर समिट में हिस्सा नहीं लिया था। यह एक सामान्य घटना नहीं थी। यह इमरान की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था। इमरान ने मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद को फोन कर खेद जताया था और कहा कि वो नहीं आ पाएंगे। वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन इसमें शामिल होने के लिए कुआलालंपुर गए थे। खास बात यह है कि अर्दोआन और इमरान ने ही इस समिट की बुनियाद रखी थी। इसके पीछे इमरान की एक बड़ी मंशा यह थी कि वह ओआईसी की तर्ज पर अलग से इस्लामिक देशों का संगठन बनाना चाह रहे थे। ओआईसी में सऊदी अरब का दबदबा है और इस नई पहल से उसके नाराज होने की खबरें थीं। आखिरकार दिसंबर, 2019 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के सामने झुकना पड़ा था।
4- सऊदी अरब और अमीरात से पंगा लेना कहीं न कहीं इमरान खान को महंगा पड़ा था। खासकर तब जब पाकिस्तान आर्थिक तंगी के हालत से गुजर रहा था। सऊदी अरब और अमीरात उसकी आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रियायत दर पर कर्ज मुहैया करा रहे थे। ऐसे में इमरान खान का अपनी महत्वकांक्षा के कारण सऊदी और अमीरात से पंगा लेना कतई जायज नहीं था। इमरान खान का यह कदम पाकिस्तान के लिए आत्मघाती कदम रहा। पाकिस्तान को देश की माली हालत ठीक करने के कई मुल्कों के समक्ष रोना पड़ा।
4- इमरान खान इस्लामोफोबिया को लेकर काफी मुखर रहे। उन्होंने पैगंबर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता खुलकर जाहिर की। फलस्तीनियों के समर्थन के अलावा वह इजरायल के धोर विरोधी रहे। उन्होंने कई मौकों पर कहा था कि वह इजरायल को कभी मान्यता नहीं देंगे। पाकिस्तान की इजरायल नीति भी अमेरिका को अखरती थी। गौरतलब है कि इमरान के विरोध के बावजूद 2020 में अमेरिकी पहल के चलते यूएई और बहरीन ने इजरायल से राजनयिक संबंध कायम किए। इसके अलावा उन्होंने पैगंबर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता खुलकर जाहिर की। भारत में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान की प्रतिक्रिया को इसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। इमरान खान अनायास भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों का राग अलापते रहते थे। उनकी इस नीति के पीछे उनकी एक गहरी योजना थी।
5- पाकिस्तान की सियासत में सेना का अहम रोल रहता है। पाकिस्तान की सियासत सेना के इर्दगिर्द घूमती है। सेना के सहयोग के बिना पाकिस्तान की हुकूमत को चला पाना कठिन काम है। इमरान को सेना से भी पंगा लेना महंगा पड़ा। इमरान खान को सत्ता तक पहुंचाने में सेना का बड़ा रोल रहा है, लेकिन सत्ता हासिल करने के बाद उनका सेना में दखल बढ़ता गया। वह सेना की नियुक्तियों में दखल देने की कोशिश की थी। आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति में इमराना की भूमिका सबसे ज्यादा खिलाफ गई है। सत्ता से बेदखल होने में सेना का रोल भले ही न हो लेकिन इमरान को सेना का सहयोग नहीं मिला।
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार की राय
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डान ने इमरान खान की विदाई पर 11 अप्रैल को संपादकीय में लिखा था कि पूरे राजनीतिक संकट में विदेश मंत्रालय में काम करने वाले लोगों का इमरान खान ने राजनीतिकरण किया है। विदेश मंत्रालय के जिस केबल का हवाला दिया जा रहा है, उससे अमेरिका जैसे अहम साझेदार से संबंध खराब हुए हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इमरान ने बहुत ही खतरनाक रास्ता चुना था। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति समिति ने पत्र की भाषा पर आपत्ति जताई है और किसी भी तरह की साजिश की बात नहीं कह रही है। दूसरी तरफ इमरान खान का कहना है कि अमेरिका की ओर से साजिश रची गई है। अखबार ने लिखा है कि इमरान अंत तक कहते रहे कि वह गहरी साजिश के शिकार हुए हैं, लेकिन अब स्पष्ट है कि अमेरिकी दूतावास के रूटीन वाले केबल की आड़ ली गई। इस केबल में अमेरिकी राजदूत की वहां के अधिकारियों के साथ हुई बैठक पर विस्तार में बात कही गई थी। इमरान ने ऐसा कर पाकिस्तान की विदेश नीति को नुकसान पहुंचाया है। इमरान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी पूरे मामले से खुद को अलग नहीं कर सकते हैं। एक विदेश मंत्री के तौर पर क़ुरैशी को बताना चाहिए कि उन्होंने अपने ओछे हितों के लिए विदेश मंत्रालय के केबल का दुरुपयोग क्यों होने दिया।