मध्य प्रदेश में अकेले भोपाल में करीब चार करोड़ का मानदेय घोटाला आया सामने

बारह करोड़ रुपये से ज्यादा के मानदेय घोटाले में फंसे भोपाल के आठ बाल विकास परियोजना अधिकारियों को बचाया जा रहा है। जहां मामले में पुलिस ने कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाई, तो महिला एवं बाल विकास विभाग भी चार साल में विभागीय जांच पूरी कर पाया है। यहां तक कि विभाग ने संबंधितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पुलिस से आगे की कार्रवाई की जानकारी तक नहीं ली, जबकि मामले में पांच बाबुओं को बर्खास्त कर दिया गया है। ये अधिकारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिकाओं के लिए दोहरा मानदेय जारी करने के मामले में फंसे हैं। मामला वर्ष 2017 में सामने आया था। इसके बाद संबंधितों को निलंबित किया गया था। यह मामला सबसे पहले भोपाल जिले की आठ बाल विकास परियोजनाओं में सामने आया था। जिला कोषालय ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका को दिए जाने वाले मानदेय के बिलों पर आपत्ति की थी।

तब जांच शुरू हुई। शुरुआत में 20-25 लाख रुपये की गड़बड़ी की बात सामने आ रही थी, पर जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, परतें खुलती गईं। आखिर में अकेले भोपाल में करीब चार करोड़ का घोटाला सामने आया। इसके अलावा रायसेन, मुरैना, कटनी, विदिशा, जबलपुर और बालाघाट में भी गड़बड़ी सामने आई। प्रारंभिक जांच में घोटाला की राशि 12 करोड़ से अधिक हो गई। जांच में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त सुबूत मिलने के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग की तत्कालीन मंत्री अर्चना चिटनीस के निर्देश पर सभी को निलंबित कर दिया गया।

जांच पूरी कर लिपिकों को किया बर्खास्त : मामले में पांच बाबू (लिपिक) बराबर के हिस्सेदार थे। विभाग ने उन्हें सजा देने में देर नहीं की। पहले निलंबित किया और फिर सात महीने में जांच पूरी कर बर्खास्त कर दिया। जबकि जांच में यह बात भी सामने आई थी कि उन्होंने सब कुछ बाल विकास परियोजना अधिकारियों के इशारे पर ही किया था। मामले विभाग की संभागीय संयुक्त संचालक ने शाहजहांनाबाद, ऐशबाग, चूनाभट्टी और बैरसिया थानों में प्राथमिकी दर्ज कराई है।

ऐसे कर रहे थे गड़बड़ी, पांच जांच कराई तब खुला मामला

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के नाम से बैंक खाते हैं। इन खातों में हर माह मानदेय की राशि डाली जाती है। पहली बार सही व्यक्ति के खाते में राशि जाती थी, जबकि उसी माह का बिल दूसरी बार तैयार होता था और फर्जीवाड़ा करने वाले परियोजना अधिकारी और बाबू सूची बदलकर चपरासी, कंप्यूटर आपरेटर और दोस्तों के बैंक खातों में राशि डलवा देते थे। बाद में सभी मिलकर आपस में राशि बांट लेते थे। मामला वित्तीय वर्ष 2015-16 और 2016-17 में सामने आया। विभाग की तत्कालीन संचालक पुष्पलता सिंह ने जांच शुरू कराई, पर कोई पकड़ में नहीं आया। एक के बाद एक चार जांचों में राज नहीं खुला, तो पांचवीं बार उच्च स्तरीय जांच की गई, जिसमें अपर संचालक, संयुक्त संचालक, वित्त सलाहकार सहित अन्य अधिकारियों की टीम बनाई गई। तब पता चला, फर्जीवाड़ा वर्ष 2014 से हो रहा था।

 

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