लखनऊ : फर्जी डाक्यूमेंट के आधार पर एनएचएम में ऑडिट अफसर तक की नौकरी हासिल की जा सकती है। यही नहीं, यदि आप अफसरों को फायदा पहुंचाने की कूबत रखते हैं, तो आप कई वर्ष तक नौकरी भी कर सकते हैं, लेकिन यदि निष्पक्षता से जांच हुई और आपके कागजात फर्जी पाए गए तो आप जेल ही नहीं जाएंगें, बल्कि इस दौरान सरकार से ली गई सैलरी भी वापस करनी होगी। इसका डर भी अब एनएचएम के अधिकारियों में नहीं है। इसे एनएचएम के दो ऑडिट अफसरों ने साबित भी किया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या योगी सरकार में कार्रवाई होगी और जेल भेजकर सरकार रिकवरी करवाएगी।
बात एनएचएम के ऑडिट विभाग में काम कर रहे दो फर्जी ऑडिट अफसरों की हो रही है। बताया जा रहा है कि अखिलेश यादव सरकार में योग्यता न होने के बाद भी एनएचएम के ऑडिट अफसर बनने में कामयाब हुए वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता पर योगी सरकार के अधिकारी भी कार्रवाई नहीं कर पाए। जब मामले को लेकर आरटीआई से खुलासा हुआ, तो तत्कालीन एनएचएम के डायरेक्टर पंकज कुमार ने पहले जांच बैठाई और बाद में जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया।
एनएचएम के बड़े अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एनएचएम के प्रबंध निदेशक रहे पंकज कुमार की खुली छूट की वजह से आज भी एनएचएम में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऑडिट अफसर न केवल नौकरी कर रहे हैं, बल्कि उगाही का पैसा अफसरों तक पहुंचाने की वजह से उनके चहेते भी बने हुए हैं। जांच रिपोर्ट को आईएएस पंकज कुमार ने कभी सामने आने ही नहीं दिया। यह रिपोर्ट यदि सामने आती है, तो न केवल पंकज कुमार के फर्जी आडिट अफसरों के साथ रिश्तों का खुलासा होगा, बल्कि फर्जी ऑडिट अफसरों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा।
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के मुख्यालय लखनऊ में तैनात ऑडिट आफिसर वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता पर क्रमशः सीए के फर्जी सर्टिफिकेट और फर्जी एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट लगाकर नौकरी पाने का आरोप है। ये दोनों पिछले 9 साल से ऑडिट ऑफिसर पद पर काम कर रहे हैं। इसका खुलासा आरटीआई से हुआ है और इसकी शिकायत दो वर्ष पहले सीएम और एनएचएम के एमडी से की गई थी। शिकायत मिलने पर एनएचएम ने जांच बैठा दी थी।
सूत्रों की माने, तो वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता की जांच रिपोर्ट आने के पहले ही इसे दबाने और बचाने करने का खेल शुरू हो गया। इसके बाद वाहिद रिजवी नौकरी छोड़कर भाग गया। वाहिद को डर था कि कहीं वह जांच रिपोर्ट आने के बाद गिरफ्तार न कर लिया जाए और जो वेतन उसने लिया है, उसकी वसूली न हो जाए। एनएचएम के कुछ अधिकारियों का कहना है कि इस बीच एनएचएम में काम कर रहा शांतनु लाल गुप्ता तत्कालीन एनएचएम निदेशक पंकज कुमार और अन्य अधिकारियों को मिलाकर रिपोर्ट को दबवा लिया और वाहिद रिजवी को फिर से 2 महीने बाद जब मामला ठंडा पड़ा तो वापस नौकरी पर बुला लिया।
मामला यहीं पर रफा-दफा हो गया और फर्जी दस्तावेजों की जांच रिपोर्ट दबने की वजह से वाहिद और शांतनु फिर से नौकरी करने लगे। बताया जाता है कि तत्कालीन एनएचएम डायरेक्टर पंकज कुमार ने पूरे मामले पर पर्दा डाल दिया था और दोनों ही अफसरों का बचाव किया था। हालांकि एक बार फिर यह मामला जोरशोर से उठ रहा है, क्योंकि योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ हैं और फर्जीवाड़ा करनेवालों पर सरकार लगातार कार्रवाई कर रही है।
आरोप है कि 9 साल पहले ऑडिट ऑफिसर बनने वाले वाहिद रिजवी ने द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के जिस सर्टिफिकेट पर नौकरी ज्वाइन की उसको आईसीएआई ने ही फर्जी करार दिया है। पता चला है कि वाहिद ने दूसरे के सर्टिफिकेट में छेड़छाड़ कर अपने नाम का फर्जी सर्टिफिकेट तैयार किया था और नौकरी के लिए अप्लाई किया था।
एनएचएम के अन्य अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर ये भी बताते हैं कि वाहिद रिजवी पर अखिलेश यादव सरकार में एक भ्रष्ट एमएलसी का संरक्षण था। इसकी वजह से वह फर्जीवाड़ा करता रहा। वाहिद रिजवी ने मेहरा एंड कंपनी में ट्रेनिंग की भी जानकारी दी है, लेकिन इस कंपनी ने एनएचएम को कोई ट्रेनिंग न होने की बात कही है। अधिकारियों के अनुसार ठीक से जांच हुई, तो वह धोखाधड़ी में फंस सकते हैं।
एनएचएम के ही ऑडिट आफिसर शांतनु लाल गुप्ता की कहानी कुछ बहुत ज्यादा अलग नहीं है। उस पर भी फर्जी प्रपत्रों के आधार पर ही नौकरी करने का आरोप है। वर्ष 2012 में एक विज्ञापन जारी हुआ था, जिसमें एसपीएमयू के लिए आफिसर ऑडिट पद के लिए आवेदन मांगे गए थे। इसमें पांच साल का अनुभव अनिवार्य था, लेकिन शांतनु लाल गुप्ता ने ट्रेनिंग को ही एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट बताकर फर्जी तरीके से नौकरी हासिल कर ली। यह भी पता चला है कि 2012 से नौकरी कर रहे शांतनु लाल ने 2007 में सीए पास किया। इसके बाद तीन साल की ट्रेनिंग होती है। मतलब उन्होंने 2010 तक ट्रेनिंग की। उसके बाद ही पांच साल का अनुभव हो सकता है, जो 2015 में पूरा होगा, लेकिन शांतनु लाल गुप्ता ने अपनी ट्रेनिंग को ही अनुभव बताकर अप्लाई किया और वर्ष 2012 में ही ऑडिट आफिसर बन गए। जो एनएचएम की नियमावली के अनुसार पूरी तरह से फर्जीवाड़ा है। यदि सरकार कार्रवाई करती है, तो इस मामले में जेल और वेतन की रिकवरी दोनों होनी तय है।
सूत्रों के अनुसार अधिकारियों की मिलीभगत से आडिट जैसे महत्वपूर्ण विभाग में इन पदों पर ज्वाइनिंग की गई। नेशनल हेल्थ मिशन में हजारों करोड़ का बजट आता है। फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर जॉब पाने वाले अधिकारियों से ऑडिट का काम लिया जाना भी कई तरह के सवाल खड़े करता है। यह हाल तब है, जब नेशनल हेल्थ मिशन के पास दोनों के नाम से कई शिकायतें आई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और चीफ सिक्रेटरी तक कैसे पहुंचा एनएचएम में भ्रष्ट अफसरों को बचाने वाला आईएएस पंकज कुमार यह सवाल अब आईएएस अफसरों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। योगी आदित्यनाथ जहां भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की बात कहते रहे हैं, वहीं बताया जा रहा है कि उनकी ही सरकार में चीफ सिक्रेटरी के प्रिंसिपल स्टाफ अफसर पंकज कुमार आज भी वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता जैसे फर्जी ऑडिट अफसरों को बचा रहे हैं। दोनों ही फर्जी आडिट अफसरों की पोल खुलते ही फर्जीवाडा करने वालों को पालने और पोसने वाले पंकज कुमार का काला चिट्ठा भी सभी के सामने होगा।
वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता की जांच रिपोर्ट और तत्कालीन एमडी पंकज कुमार ने क्या कार्रवाई की इसको लेकर आरटीआई से जानकारी मांगी गई है, हालांकि एनएचएम से ये जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है, लेकिन यह जानकारी वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता के लिए ही नहीं, बल्कि कई अन्य अधिकारियों की भी पोल खोल देगी, जो इस पूरे फर्जी ऑडिट अफसर स्कैम में शामिल हैं।
एनएचएम सूत्रों की माने तो फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहे वाहिद रिजवी और शांतनु लाल गुप्ता टेंडर मैनेज करवाने का धंधा चलाते हैं। किस कंपनी को ऑडिट का काम मिलेगा और किसे नहीं मिलेगा इसे तय करने और एनएमएम में रह कर सीए फर्म को काम दिलवाने का काम करते रहे हैं।
मामले को लेकर हाईकोर्ट के अधिवक्ता अशोक सिंह का कहना है कि कोई भी दस्तावेज फर्जी पाए जाने पर न केवल अफसरों की सेवा समाप्त कर जेल भेजा जाएगा, बल्कि उनकी नौकरी के दौरान दिए गए पूरे वेतन की ब्याज सहित वसूली की कार्रवाई भी योगी सरकार करेगी। योगी सरकार भष्ट्राचार और भ्रष्ट अधिकारियों को लेकर बहुत ही सख्त है। किसी भी विभाग का अधिकारी यदि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहा है, तो जानकारी होने पर उसके खिलाफ सबसे पहले एफआईआर करवाई जाएगी और उसकी गिरफ्तारी होगी।