सऊदी अरब ने मई में एशिया के लिए भेजे जाने वाले तेल के दाम बढ़ा दिए हैं जबकि यूरोप के लिए ईंधन के दामों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. सऊदी अरब ने रविवार को आधिकारिक तौर पर इसका ऐलान कर दिया. इस घोषणा के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ता ने साफ कर दिया कि सऊदी अरब से तेल आयात में कटौती करने के भारत के फैसले से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि सऊदी अरब ने कच्चे तेल के दामों यानी आधिकारिक बिक्री मूल्य (OSP) में 20-30 फीसदी की वृद्धि की है. सऊदी अरब की सरकारी कंपनी सऊदी अरामको अनुबंधों के तहत हर महीने तेल के दाम का निर्धारण करती है. बहरहाल, अन्य पश्चिमी एशियाई उत्पादक देशों ने अपनी तेल की कीमतों को कम करने के संकेत दिए हैं.
सऊदी अरामको ने दामों में उस समय बढ़ोतरी की है जब भारत ने अपने देश की रिफाइनरियों से सऊदी अरब से आयात में कटौती करने और तेल प्रोडक्शन बढ़ाने को कहा है. तेल की कीमतों को कम करने के भारत के अनुरोध को दरकिनार करते हुए सऊदी अरब ने तेल के दाम बढ़ा दिए थे. इस पर भारत के केंद्रीय तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने निराशा जाहिर की थी और रिफाइनरियों से तेल आयात में कटौती के लिए कदम उठाने को कहा था. भारत के इस कदम को सऊदी अरब के फैसले से निपटने के कदम के तौर पर देखा गया.
असल में, भारत ने कच्चे तेल के दाम को कम करने की सऊदी अरब से अपील की थी, लेकिन वहां के मंत्री अब्दुल अजीज बिन सलमान अल सऊद का कहना था कि भारत अपने उस स्ट्रैटेजिक तेल रिजर्व का इस्तेमाल करे, जो उसने पिछले साल तेल के गिरती कीमतों के दौरान खरीद कर जमा किया है. इसके बाद धर्मेंद्र प्रधान ने अब्दुल अजीज बिन सलमान अल सऊद के बयान पर आपत्ति जाहिर की थी.
यह विरोधाभास ही है कि अधिकारियों ने फरवरी में भारत की जीत का दावा किया था, जब सऊदी अरामको ने एशिया के लिए मार्च की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किए थे, लेकिन यूरोप के लिए तेल के दामों में बढ़ोतरी कर दी थी. मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014-15 में सभी सरकारी तेल कंपनियों और अन्य सरकारी अफसरों की एक टीम ने कुवैत, अबू धाबी और सऊदी अरब का दौरा किया था. टीम का दौरा इसलिए हुआ था क्योंकि रियाद मार्केट डायमिक्स के आधार पर स्थापित मानदंडों से अलग तेल का दाम तय करने को तैयार नहीं था.
भारतीय रिफाइनरियों और अन्य एशियाई खरीदारों के लिए पश्चिमी एशिया, जो भारत के तेल आयात का 60% हिस्सेदार है, कम दूरी, कियाफती ढुलाई लागत, प्रतिबद्ध मात्रा में आपूर्ति करने की क्षमता के कारण लागत प्रभावी स्रोत है. हालांकि संयुक्त रूप से खरीदारी करने की रणनीति भी इस मामले में कामगर साबित नहीं होने वाली है क्योंकि हर रिफाइनरी की अलग-अलग जरूरत है. यही वजह है कि अमेरिका को भारत के लिए लागत प्रभावी नहीं माना जाता है हालांकि वह भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने केंद्र सरकार के सूत्र के हवाले से बताया कि सरकार को उम्मीद है कि ईरान पर लगे प्रतिबंधों में तीन से चार महीनों में ढील दे जाएगी. लिहाजा, भारत तेल आयात के लिए ईरान को सऊदी अरब के विकल्प के तौर पर देख रहा है. दो कारोबारियों का कहना था कि ईरान-भारत की पारी से लाभान्वित होने का उनके लिए एक अच्छा मौका है, जैसा कि वेनेजुएला, कुवैत और अमेरिका से उन्हें लाभ मिल चुका है. एक भारतीय रिफाइनरी सूत्र का कहना था कि अमेरिका, अफ्रीका, कजाकिस्तान को भी विकल्प के तौर परे देखा जा रहा है.
हालांकि, भारतीय आयातकों की प्राथमिकता में अब भी सऊदी अरब ही है. विश्लेषकों का मानना है कि मिडिल ईस्ट भारत के लिए प्राथमिक आपूर्तिकर्ता बना रहेगा क्योंकि तेल शिपिंग की लागत सबसे कम होती है. तेल मंत्रालय आपूर्तिकर्ताओं के साथ संयुक्त रूप से बातचीत करने के लिए रिफाइनरियों के एक रोडमैप तैयार करने के लिए काम कर रहा है.
धर्मेंद्र प्रधान ने संयुक्त अरब अमीरात के राज्य मंत्री और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सुल्तान अहमद अल जाबेर और अमेरिका के ऊर्जा मंत्री जेनिफर ग्राहन्होम ऊर्जा भागीदारी को मजबूत करने को लेकर बैठकें की हैं. धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में कहा था कि अफ्रीकी देश भारत के तेल विविधीकरण में केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं. भारत गुयाना के साथ दीर्घकालिक तेल आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर करने और रूस से आयात बढ़ाने के विकल्प तलाश रहा है. बता दें कि भारत में तेल की बढ़ी कीमतों की वजह से केंद्र सरकार विपक्ष के निशाने पर है.
इस बीच, कोरोना वायरस महामारी की मार सऊदी अरामको पर भी पड़ी है. दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी ने 2020 में सऊदी अरब सरकार को 30 प्रतिशत कम टैक्स का भुगतान किया है. सऊदी अरामको इस साल सरकार को 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर टैक्स के रूप में भुगतान किए हैं जबकि इससे पहले 2019 में 159 बिलियन डॉलर टैक्स का भुगतान किया था. फिलहाल, सऊदी अरब सरकार ने 2021 के बजट में 263 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने की योजना बनाई है, जो सरकारी खजाने से अरामको के भुगतान के महत्व को दर्शाता है.