कोविड से बचाव के लिए कई टीकों के इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है, पर टीका लगने के बाद उनके इम्यून रेस्पांस को लेकर चिंता बनी हुई है। इन टीकों के विकास के लिए अलग-अलग विधियां अपनाई गई हैं। इनके लाभ भी हैं और नुकसान भी। वहीं जो वैक्सीन एमआरएनए मॉलिक्यूल्स पर आधारित हैं उनके स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट के लिए अत्यंत न्यून तापमान की आवश्यकता पड़ती है। दुनिया के कई देशों में वैक्सीन की जरूरत ज्यादा है, लेकिन वहां वैक्सीन पहुंचाना बहुत दुष्कर कार्य है। अत: कोविड की रोकथाम के लिए अतिरिक्त टीके विकसित करना बहुत जरूरी है।
वैक्सीन बनाने के लिए पारंपरिक विधियों के अलावा नई तकनीकें भी अपना रहे हैं जिनमें डीएनए वैक्सीन टेक्नोलॉजी भी शामिल है। टीकाकरण के जरिये मुख्यत: इम्यून सिस्टम को किसी संक्रामक वायरस या बैक्टीरिया अथवा उनके हिस्सों से उत्प्रेरित किया जाता है। इस संक्रामक रोगाणु को कुछ ऐसे संशोधित किया जाता है कि मेजबान को उससे कोई हानि न हो, लेकिन जब उसका सामना संक्रामक रोगाणु से हो तो वह उसे तुरंत निष्प्रभावी कर दे।
पिछले सौ वर्षो से वैक्सीन के विकास के लिए यही तरीका अपनाया जा रहा है, लेकिन हाल में वैज्ञानिकों ने टीकाकरण के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक को डीएनए वैक्सीन प्लेटफॉर्म कहा जाता है। इस तकनीक में वायरस या बैक्टीरिया के जीन का उपयोग किया जाता है। जब किसी मरीज को डीएनए वैक्सीन लगाई जाती है तो उसकी कोशिकाओं की मशीनरी वायरस या बैक्टीरिया का प्रोटीन बनाने लगती है। मरीज का इम्यून सिस्टम तुरंत समझ जाता है कि यह कोई बाहरी तत्व है। भविष्य में जब कोई ऐसा वायरस या बैक्टीरिया शरीर पर हमला करेगा तो शरीर का इम्यून सिस्टम उसे पहचान कर इम्यून रेस्पांस उत्पन्न करेगा।
स्वीडन में कोविड के खिलाफ एक नई प्रोटोटाइप वैक्सीन विकसित की गई है जिसमें डीएनए आधारित विधि अपनाई गई है। यह विधि सस्ती और टिकाऊ है। यह वैक्सीन चूहों में तगड़ा इम्यून रेस्पांस उत्पन्न करने में सफल रही है। इस वैक्सीन में कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के जीन को शामिल किया गया है। इससे उत्पन्न एंटीबॉडीज कोरोना वायरस को निष्प्रभावी कर देती हैं। डीएनए प्लेटफॉर्म का उपयोग कई वैक्सीनों के विकास के लिए किया जा चुका है। इबोला, एड्स और चिकनगुनिया जैसे अति संक्रामक रोगों के इलाज के लिए इनके क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं।
नई विधि से तैयार वैक्सीन का एक बड़ा फायदा यह है कि इसे कम डोज में दिया जा सकता है और इसके साइड इफेक्ट भी कम होंगे। इसके दो बड़े लाभ ये हैं कि स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट में कोल्ड चेन की जरूरत नहीं और वायरस के नए वेरिएंट्स के खिलाफ भी इनका प्रयोग किया जा सकता है।