राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की जगह कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को सदन में विपक्ष का नेता बनाने का फैसला किया

राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल 15 फरवरी को खत्म होने वाला है, जिसके लिए सदन में उन्हें विदाई भी दे दी गई है. उच्च सदन में गुलाम नबी आजाद की जगह कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को सदन में विपक्ष का नेता बनाने का फैसला किया है, इसके लिए कांग्रेस ने राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्यसभा नेता बनाने की सूचना भी दे दी है.

बता दें कि मल्लिकार्जुन खड़गे साल 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे, जिसके बाद उन्हें पिछले साल राज्यसभा में सदस्य के तौर पर लाया गया. पिछली लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे को अब राज्यसभा में कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद के विकल्प के तौर पर सदन के प्रतिपक्ष का नेता बनाने का फैसला किया है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह 2014 से 2019 के बीच लोकसभा में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं और कई मुद्दों पर पार्टी की आवाज रहे हैं.

गुलाम नबी आजाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी सहित चार गांधी परिवार के सदस्यों के साथ काम करने का अनुभव है. जम्मू-कश्मीर से वो साल 2015 में राज्यसभा चुनकर आए थे, जिसका कार्यकाल 15 फरवरी को पूरा हो रहा है. केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं, जिसके चलते राज्यसभा सीटें रिक्त रहेंगी. यही वजह है कि गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा कार्यकाल पूरा होने के बाद कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को सदन का नेता चुना है.

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्यसभा नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए उच्च सदन के सभापति वेंकैया नायडू के नाम भेजा है. माना जा रहा है कि शाम तक इस पर वेंकैया नायडू अपना निर्णय दे सकते हैं. हालांकि, कांग्रेस में गुलाम नबी आजाद के विकल्प के तौर पर राज्यसभा में उपनेता के नेता आनंद शर्मा और दिग्विजय सिंह से लेकर पी चिदंबरम जैसे नेताओं के नाम की चर्चा थी.

आनंद शर्मा कांग्रेस के उन नेताओं के फेहरिश्त में शामिल हैं, जिन्होंने पार्टी के नेतृत्व में बदलाव को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखा था. इसीलिए माना जा रहा है कि आनंद शर्मा के नाम पर मुहर नहीं लगी है. वहीं, पी चिदंबरम के साथ हिंदी बोलने की बड़ी दिक्कत है, जिसके चलते पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में विपक्ष का नेता नहीं बनाया है. ऐसे में खड़गे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ही आसानी से अपनी बात रख लेते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के दिग्गज और वरिष्ठ नेता होने के साथ पार्टी का दलित चेहरा भी हैं. कर्नाटक की सियासत में उन्होंने साठ के दशक में कदम रखा था और अपने जीवन में सिर्फ साल 2019 में चुनाव हार गए थे, जिसके चलते उन्हें पिछले साल कांग्रेस ने राज्यसभा के जरिए सदन में भेजा है.

मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म आजादी से पांच साल पहले 21 जुलाई 1942 को बिदर जिले में हुआ था. उनकी पढ़ाई लिखाई गुलबर्गा में हुई और उन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की. उन्होंने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा और संघर्ष करके एक ऊंचा मुकाम हासिल किया है.

1969 में कांग्रेस में शामिल हुए फिर उन्होंने पलटकर नहीं देखा. पहले गुलबर्गा के कांग्रेस शहर अध्यक्ष बने. इसके बाद 1972 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद 2008 तक लगातार वे 9 बार लगातार विधायक चुने जाते रहे. इसके बाद वह लगातार दो बार 2009 और 2014 में सांसद बने. खड़गे अपने राजनीतिक करियर में नौ बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं.

यूपीए सरकार में वे रेल मंत्री, श्रम और रोजगार मंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं. मौजूदा समय में वे गुलबर्गा से दूसरी बार सांसद हैं. इतना ही नहीं लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता भी हैं. खड़गे स्वच्छ छवि वाले नेता माने जाते हैं.वे कर्नाटक की राजनीति में लंबा अनुभव रखने वाले नेता है. विधायक के साथ-साथ देवराज उर्स सरकार में उन्हें ग्रामीण विकास और पंचायत राज राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था. इसके बाद वीरप्पा मोहली के नेतृत्व वाली सरकार में भी वे कद्दावर मंत्री रहे.

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