अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने पहले राजनयिक संबोधन में वैश्विक मंच से अमेरिका इज बैक की घोषणा की है। अमेरिकी विदेश विभाग में दिए गए इस संबोधन में उन्होंने अपने ही अंदाज में एक बार फिर से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से इतर अपनी नीतियों की घोषणा से की। उन्होंने इस दौरान यमन चल रहे सिविल वार को खत्म करने और वहां पर सऊदी अरब के गठबंधन को सहयोग न करने का एलान किया। उन्होंने यमन में चल रहे खूनी संघर्ष एक मानवीय त्रासदी बताते हुए इसको रोकने के लिए एक विशेष राजदूत की नियुक्त करने की बात भी कही है।
गौरतलब है कि यमन में सऊदी और ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों के बीच वर्षों से जंग चल रही है। इसका खामियाजा वहां के आम लोगों को भुगतना पड़ा रहा है। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने इस युद्ध में सऊदी अरब समर्थित गुटों का समर्थन करते हुए उन्हें हथियार समेत अन्य सामान की भी आपूर्ति में मदद की थी। बाइडन ने साफ कर दिया है कि वो यमन में सऊदी नेतृत्व के तहत चलाए जा रहे सैन्य अभियानों से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं। यमन के मसले पर उन्होंने जोर देकर कहा कि अब ये संघर्ष समाप्त होना चाहिए। इसकी वजह से ये गरीब देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गया है।
अपने इस पहले संबोधन में उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी। उन्होंने रूस, चीन और म्यांमार में हुए तख्तापलट पर भी अपने विचार सभी के सामने रखे। उन्होंने कहा कि चीन की महत्वाकांक्षा का सामना अमेरिका को आगे भी करना होगा। वहीं रूस पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वहां की सरकार लोकतंत्र की राह को बाधित करने का काम कर रही है। अमेरिका को इन सभी चुनौतियों से निपटना होगा। इसके अलावा कोविड-19 का प्रसार रोकने, जलवायु संकट पर लगाम लगाने और परमाणु प्रसार पर भी तेजी से काम करना होगा।
बाइडन ने पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा टैरिफ बढ़ाए जाने की भी निंदा की। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से कई एशियाई और यूरोपीय नेताओं की नाराजगी का सामना अमेरिका को करना पड़ा। इस फैसले का असर अमेरिका के वैश्विक गठबंधन पर भी पड़ा। बाइडन ने कहा कि अमेरिका कूटनीति का इस्तेमाल अपने साथ दुनिया की बेहतरी के लिए करता है। इसके लिए सभी को साथ लेकर चलने की जरूरत होती है।
अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जैक सुलिवन के मुताबिक बाइडन ने अपने चुनावी सभाओं में इन सभी बातों का जिक्र किया था। इस संबोधन में उन्होंने उन्हीं बातों और वादों को सभी के सामने रखा है। हालांकि उन्होंने यमन के लिए विशेष दूत के नाम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इसके लिए अमेरिकी डिप्लोमेट टिमूथी लैंडरकिंग का नाम हो सकता है। इसकी वजह ये भी है कि वो यमन के मामलों में एक विशेषज्ञ हैं। इसके अलावा वो सऊदी अरब में बतौर राजदूत रह चुके हैं और खाड़ी मामलों में डिप्टी असिसटेंट सेक्रेटरी रह चुके हैं।
उन्होंने ये भी कहा है कि राष्ट्रपति के यमन में चल रहे संघर्ष से पीछे हटने का एक मकसद अल-कायदा और उसके नेटवर्क को कम करना भी है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यमन के संघर्ष में एक लाख से अधिक लोग अब तक जान गंवा चुके हैं जबकि करीब 80 फीसद लोग वहां से अपना घर छोड़कर दूसरी जगहों पर शरण ले चुके हें। देश के करीब ढाई करोड़ लोगों मदद की दरकार है। गौरतलब है कि मार्च 2015 में यमन में सऊदी अरब समर्थित गुटों ने वहां के सिविल वार में अपनी शिरकत शुरू की थी।