तमिल फिल्म स्टार रजनीकांत ने अपनी नई पार्टी नहीं बनाने का ऐलान कर दिया है. कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था 31 दिसंबर को अपने फैंस की भारी मांग पर वे नई पार्टी का गठन करेंगे. उन्होंने भावी विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने का भी फैसला किया था. लेकिन अब स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने राजनीति में नहीं उतरने की बात कही है.
सवाल है कि रजनीकांत के पार्टी नहीं बनाने से तमिलनाडु में किसे फायदा होगा. इसका जवाब है कि तमिलनाडु की शायद ही कोई पार्टी होगी जिसे रजनीकांत के इस फैसले से खुशी न मिली हो. रजनीकांत के राजनीति में उतरने का मतलब था हर पार्टी के वोट में भारी सेंधमारी. एआईएडीएमके हो या डीएमके या फिर बीजेपी, रजनीकांत सबके वोट में दखल देने वाले थे. इसलिए उनकी पार्टी नहीं बनने से लगभग सभी पार्टियों को फायदा होगा.
जानकार इसका एक और एंगल बता रहे हैं. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि शशिकला बहुत जल्द जेल से बाहर निकलने वाली हैं. वे जयललिता की करीबी रह चुकी हैं और उन्हें एआईएडीएमके की हर राजनीति की जानकारी है. इसलिए हर बड़ी तैयारी के साथ वे विधानसभा चुनाव लड़ेंगी. इसके संकेत मिलने भी लगे हैं, तभी उन्होंने संपत्ति से अधिक मामले में हर्जाना भर कर चुनाव से पहले जेल से बाहर आने का फैसला किया है. अगले साल अप्रैल-मई महीने में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. जानकारों के मुताबिक इस बार का चुनाव खास होने की संभावना बन रही थी क्योंकि एक तरफ शशिकला होतीं तो दूसरी ओर रजनीकांत.
तमिलनाडु के लोग इन्हीं दोनों नए चेहरों के बीच लड़ाई देखना पसंद करते क्योंकि डीएमके हो या एआईएडीएमके, दोनों पार्टियों से लोगों को मन उब गया है. तमिलनाडु के लोगों को नए चेहरे और नई राजनीति चाहिए जिसमें शशिकला बनाम रजनीकांत की दिलचस्प लड़ाई होती. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि रजनीकांत पार्टी ही नहीं बनाएंगे तो लड़ाई किस बात की. रजनीकांत के इस फैसले से शशिकला को भी खुशी हुई होगी और अब वे आसानी से डीएमके और एआईएडीएमके के खिलाफ अपनी राजनीति तेज करेंगी.
रजनीकांत से सबसे ज्यादा चिंता एआईएडीएमके को हो रही थी. राजनीतिक जानकारों की मानें एआईएडीएमके नीत ई. पलनीस्वामी सरकार के खिलाफ लोगों में रोष है. कोरोना को जिस लचर ढंग से संभाला गया, उसे लेकर पार्टी के खिलाफ लोगों में गुस्सा है. एआईएडीएमके के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर तेज है जिसका फायदा रजनीकांत की पार्टी को मिलता, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा. सत्ता विरोधी लहर झटकने में डीएमके अब बड़ा रोल निभा सकती है.
तमिलनाडु की राजनीति देखें तो एआईएडीएमके, बीजेपी के नजदीक रही है, इसलिए हिंदू वोट बैंक उसी के पाले में जाते रहे हैं. रजनीकांत अगर राजनीति में आते तो दोनों पार्टियों (AIADMK और BJP) को घाटा होता. रजनीकांत ‘आध्यात्मिक राजनीति’ की बात कर रहे थे, लिहाजा एआईएडीएमके और बीजेपी के हिंदू वोट रजनीकांत को शिफ्ट होते. अब रजनीकांत राजनीति से बाहर हैं तो इसका फायदा एआईएडीएमके और बीजोपी को मिल सकता है. हालांकि बीजेपी का वोट आधार तमिलनाडु में न के बराबर है, लेकिन इस बार बीजेपी कुछ बड़ा करने के मूड में है. रजनीकांत अध्यात्म के आधार पर राजनीति शुरू करते तो बीजेपी कुछ घाटे में जरूर जाती. अब इसकी संभावना क्षीण हो गई है.
प्रशांत किशोर भी रजनीकांत के फैसले से खुश होंगे. प्रशांत किशोर डीएमके के लिए चुनाव की रणनीति बना रहे हैं. प्रशांत किशोर की रणनीति में बड़ा हिस्सा चुनावी कैंपेन को चकमक बना कर लोगों का वोट लेना है. रजनीकांत इस काम में बड़ा रोड़ा बन रहे थे क्योंकि फिल्मी दुनिया ने उन्हें पहले से स्टार घोषित किया है. फिल्मों की बदौलत रजनीकांत तमिलनाडु के घर-घर में घुसे हुए हैं. प्रशांत किशोर या किसी भी अन्य चुनाव रणनीतिकार को घर-घर में घुसने के लिए कई-कई रणनीति बनानी होगी. जबकि रजनीकांत बिना किसी रणनीति और तैयारी के लोगों के दिलों पर राज करते हैं. अब रजनीकांत चुनाव से बाहर हैं, इसलिए प्रशांत किशोर भी चैन की सांस ले सकते हैं.