शाहीन बाग के प्रदर्शन को अब एक साल हो चुका है। कोरोना के कारण बीच में ही अचानक खत्म कर दिए गए इस आंदोलन को जनवरी में फिर से शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए इस आंदोलन के आयोजकों के बीच चर्चा चल रही है। इसके पहले आयोजकों ने 13 दिसंबर की रात उस घटना की बरसी मनाई जिसमें दिल्ली पुलिस द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों पर कथित तौर पर हमला किया गया था। यह बरसी जामिया यूनिवर्सिटी के साथ-साथ असम सहित देश के कई हिस्सों में मनाई गई। शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों ने मीडिया से कहा कि वे आंदोलन को दोबारा शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। इन चर्चाओं के बीच शाहीन बाग के आसपास की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
शाहीन बाग आंदोलन में प्रदर्शनकारी महिला शबाना ने मीडिया से कहा कि कोरोना के कारण आंदोलन को बीच में रोकना पड़ गया था। लेकिन अब उसे दोबारा शुरू करने की बात चल रही है। जल्दी ही इसकी योजना बनाकर इसे शुरू किया जाएगा क्योंकि आंदोलन का उद्देश्य अब तक नहीं हासिल किया जा सका है। जनवरी में फिर से इसकी शुरुआत हो सकती है। पुलिस ने पहले भी आंदोलन को रोकने की कोशिश की थी। अगर इस बार भी आंदोलन शुरू करने में बाधा डालने की कोशिश की जाएगी तो उसका उचित रास्ता निकाला जाएगा।
शाहीन बाग की रहने वाली महिला आंदोलनकारी शबाना ने कहा कि आज वे किसानों का दर्द महसूस कर सकती हैं क्योंकि अपने आंदोलन के दौरान उन्होंने भी इसी तरह भयानक ठंड में सड़कों पर रातें गुजारी थीं। उन्होंने कहा कि किसानों के आंदोलन को उनका पूरा समर्थन है। इस देश में हिंदू-मुसलमान-सिख सभी तरह के किसान हैं, इसलिए किसान आंदोलन को किसी भी तरह धर्मों के आधार पर नहीं बांटना चाहिए।
शबाना ने कहा कि वे पूरी दिल्ली पुलिस को गलत नहीं कहती हैं क्योंकि इसी दिल्ली पुलिस के सैकड़ों जवानों ने उनकी तीन महीने तक आंदोलन के दौरान सुरक्षा दी थी। जिसके कारण वे सुरक्षित तौर पर आंदोलन करती रहीं, लेकिन वे उन गलत पुलिस वालों को सजा अवश्य दिलवाना चाहती हैं जिन्होंने जामिया कैंपस में घुसकर निर्दोष छात्रों पर हमला किया था। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस समय भी धमकी दे रहे हैं कि अगर किसानों ने अपना आंदोलन वापस नहीं लिया, सड़कों को खाली नहीं किया तो वे इसे भी शाहीन बाग की तरह जाफराबाद (जाफराबाद में शाहीनबाग आंदोलन के बाद हिंसा हुई थी) में तब्दील कर देंगे। पुलिस को ऐसे तत्त्वों पर लगाम लगानी चाहिए क्योंकि इससे शांति को खतरा पैदा हो सकता है।
वहीं, एक अन्य प्रदर्शनकारी महिला नाजिया शाहीन ने मीडिया से कहा कि हमारा आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण चल रहा था। लेकिन सरकार से जुड़े अनेक लोगों ने हमें आतंकी करार दे दिया था। अब किसान आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है तो उन्हें खालिस्तानी और आतंकी करार दिया जा रहा है। इस तरह सरकार से जो भी सहमति न रखे, उसे आतंकी नहीं बताया जाना चाहिए क्योंकि इससे देश की सहिष्णुता खतरे में पड़ती है। नाजिया ने कहा कि शाहीन बाग आंदोलन के कारण भारी आर्थिक नुकसान हुआ था, लेकिन कोई भी नुकसान जान से बढ़कर नहीं हो सकता है। जो दोनों कानून लाए जा रहे थे, वे उनके साथ-साथ उनके बच्चों के भविष्य पर भी असर डाल सकते हैं, यही कारण है कि उन्होंने इसका विरोध किया था।
नाजिया शाहीन ने कहा कि किसी भी सरकार को इस तरह से कानून बनाना चाहिए जिससे समाज के किसी वर्ग को परेशानी न हो। अगर कानून बनाने के पहले सरकार इस पर ठीक से विचार कर ले तो शायद कोई परेशानी ही न खड़ी हो। लेकिन अगर सरकार की किसी ऐसी कोशिश से देश का भविष्य खतरे में पड़ता है तो लोगों को सड़कों पर उतरने से नहीं हिचकना चाहिए।