भारत में दी जानें वाली सब्सिडी का, कनाडा समेत कई देश करते हैं विरोध

भारत में दी जानें वाली सब्सिडी का, कनाडा समेत कई देश करते हैं विरोध

नई दिल्‍ली। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भले ही नए कृषि कानूनों के विरोधमें आंदोलित किसानों की हिमायत का ढोंग कर रहे हों, लेकिन उनका देश विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ में सीधे तौर पर भारत की न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति का लंबे अरसे से विरोध करता रहा है। हालांकि, एमएसपी का विरोध करने वाला वह अकेला विकिसत देश नहीं है, अमेरिका समेत कई अन्य भी इसमें शामिल रहे हैं। आइए जानते हैं कि ट्रूडो अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मर्यादा को लांघते हुए भारत में आंदोलन कर रहे किसानों की हिमायत क्यों कर रहे हैं और उनका देश डब्ल्यूटीओ में भारत की कृषि नीतियों का विरोध क्यों करता रहा है…

इन जिंसों के लिए तय होती है एमएसपी

केंद्र सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों पर फिलहाल 23 प्रकार की जिंसों के लिए एमएसपी तय करती है। इनमें 7 अनाज, 5 दलहन, 7 तिलहन व 4 नकदी फसलें शामिल हैं।

डब्ल्यूटीओ में विरोध करने वाले देश

वर्ष 2018-19 में डब्ल्यूटीओ की बैठक के दौरान कनाडा, ब्राजील, न्यूजीलैंड, अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया आदि विकसित देशों ने आरोप लगाया कि भारत ने धान की खरीद के दौरान किसानों को तय सीमा से ज्यादा सब्सिडी दी है। कनाडा, ब्राजील व न्यूजीलैंड का इस मुद्दे पर विरोध ज्यादा मुखर रहा। इन देशों ने धान के साथ-साथ गेहूं व अन्य फसलों के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भी विरोध किया।

सब्सिडी का मानक क्या है

डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते (एओए) के अनुसार, भारत जैसे विकासशील देश फसलों की उत्पादन लागत पर अधिकतम 10 फीसद ही सब्सिडी दे सकते हैं। इस सब्सिडी की गणना भी वर्ष 1986-88 की कीमतों के अनुरूप की जाएगी। इसकी वजह से भारत में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी डब्ल्यूटीओ के तय मानक से ज्यादा हो जाती है। अन्य विकासशील देशों का भी यही हाल है। हालांकि, एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका हर साल 120 बिलियन डॉलर (8,864.76 अरब रुपये) की कृषि सब्सिडी देता है, जबकि भारत में सिर्फ 12 बिलियन डॉलर (885.40 हजार करोड़ रुपये) कृषि सब्सिडी पर खर्च किए जाते हैं।

मानक पर भारत को है आपत्ति

किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के तय मानक पर भारत समेत अन्य विकासशील देश आपत्ति जताते रहे हैं। वर्ष 2013 में बाली में आयोजित जी-33 देशों के मंत्री स्तरीय सम्मेलन में यह मुद्दा जोरशोर से उठा। यह कहा गया कि वर्ष 1986-88में फसलों की कीमत काफी कम थी। ऐसे में उसके अनुरूप सब्सिडी का निर्धारण करना उचित नहीं है। इसके बाद विकासशील देशों को पीस क्लॉजका लाभ प्रदान किया गया। इसके तहत विकासशील देशों को मानक के उल्लंघन पर विवादों में नहीं घसीटा जा सकता।

विकसित देशों के विरोध का आधार

गत वर्ष कनाडा ने भारत से किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर 25 सवाल किए थे। इसके साथ ही उसने आशंका जताई थी कि अगर भारत अपने किसानों को ज्यादा सब्सिडी देगा तो इसका असर वैश्विक कृषि कारोबार पर पड़ेगा। दरअसल, वर्ष 2015 से कनाडा और दूसरे विकसित देश ऐसे कदम उठाते आ रहे हैं। गत वर्ष ही अमेरिकाऔर कनाडा ने डब्ल्यूटीओ में चना, उड़द, मटर व अन्य फसलों के लिएसरकार की तरफ से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आपत्ति जताई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि कनाडा के पीएम ट्रूडो की भारत के किसान आंदोलन संबंधी चिंता उनके देश की राजनीति से भी प्रेरित है, जहां भारतीय समुदाय का दबदबा है।

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