रावण अत्यंत ज्ञानी और प्रकांड पंडित था। उसके बराबर ज्ञानी इस पृथ्वी पर कोई दूसरा नहीं था। रावण ही एकमात्र ऐसा विद्वान और ज्ञानी था जिसमें त्रिकाल दर्शन की क्षमता थी। लेकिन अपने अंहकारवश होकर जब रावण ने छल से माता सीता का हरण कर लिया, तब प्रभु श्री राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर आक्रमण कर दिया।
राम जी से युद्ध में पराजय के बाद जब रण भूमि में रावण मरणासन्न अवस्था में था, तब प्रभु श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण को आज्ञा दी कि वह रावण के पास जाकर जीवन की कुछ बहुमूल्य सीख लें। क्योंकि राम जी स्वयं ये जानते थे कि रावण बहुत ज्ञानी और प्रकांड पंडित है। राम जी ने स्वयं रावण के ज्ञान की प्रशंसा की थी। राम जी की आज्ञानुसार लक्ष्मण दशानन से ज्ञान लिया, तब मरणा सन्न अवस्था में रावण ने अपने जीवन के अनुसार लक्ष्मण को महत्पूर्ण सीख दी जो आज के जीवन में भी सार्थक लगती है।
अपने भ्राता की आज्ञानुसार लक्ष्मण दशानन के पास जाकर खड़े हो गए, परंतु कुछ समय बाद वापस आ गए और राम जी को बताया की रावण रावण ने उनसे कुछ नहीं कहा, राम जी सारा वृतान्त समझ गए उन्होंने अपने अनुज (छोटे भाई) को समझाते हुए कहा कि जब हम किसी से ज्ञान लेते हैं तो उसको सम्मान देते हैं इसलिए इसबार रावण के सिर की ओर नहीं पैरों की ओर खड़ो होकर विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हुए सीख लेना। लक्ष्मण जी ने ऐसा ही किया तब दशानन ने अपने जीवन के अनुसार तीन बहुमूल्य बातें लक्ष्मण को बताई।
रावण ने सबसे पहली महत्वपूर्ण बात बताई कि जीवन में शुभ कार्य करने में कभी देरी न करें। शुभ कार्यों को जल्दी ही कर लेना उचित रहता है। लेकिन अगर आप जानते हैं कि कोई कार्य अशुभ है तो जितना हो सके उसे टालने की कोशिश करें।
रावण ने बताया कि वह समय रहते स्वयं श्री नारायण के अवतार प्रभु श्री राम को पहचान नहीं पाया जिसके कारण उनकी शरण में जाने में बिलंब हो गया उसी के परिणामवश आज रणक्षेत्र में वह मरणासन्न अवस्था में है।
दशानन ने लक्ष्मण को दूसरी महत्वपूर्ण बात बताते हुए कहा कि अपने जीवन में कोई गोपनीय बात या भेद किसी को नहीं बताना चाहिए। विभीषण को अपनी मृत्यु के गोपनीय रहस्य विषय में बताने के कारण ही आज वह मृत्यु की शैय्या पर है। विभीषण ने ही राम जी को बताया था कि रावण की मृत्यु तभी संभव है जो उसकी नाभि पर प्रहार किया जाए।
दशानन ने लक्ष्मण को सीख देते हुए तीसरी महत्वपूर्ण बात बताई की प्रतिद्वंदी चाहे कैसा भी क्यों न हो उसे कभी अपने से छोटा या कमजोर नहीं समझना चाहिए। यही त्रुटि उसने अपने जीवन में की है कि राम को साधारण और कमजोर समझा।