दिग्गज दलित नेता रहे रामविलास पासवान के निधन के बाद राजनीतिक हल्कों में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान संभावित सहानुभूति के सहारे पिता की विरासत संभाल पाएंगे? हालांकि पासवान के निधन के बाद जदयू और भाजपा के लिए अब लोजपा पर सीधा हमला बोलना आसान नहीं होगा।
राम विलास पासवान दलितों के सर्वमान्य और सर्वाधिक कद्दावर नेता रहे हैं। उनके निधन से लोजपा के प्रति दलितों में सहानुभूति स्वाभाविक है। हालांकि इसके बाद उनके सांसद पुत्र चिराग के लिए चुनौतियों का दौर शुरू होने वाला है। उनका राजनीतिक भविष्य बहुत हद तक बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे पर निर्भर करेगा।
चुनाव में पार्टी का बेहतर प्रदर्शन न सिर्फ चिराग के सियासी कद को नई ऊंचाइयां देगा, बल्कि पासवान के विरासत पर उनके नाम की मुहर भी लग जाएगी। इसके विपरीत अगर पार्टी का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा तो चिराग के लिए मुसीबतों का दौर शुरू होगा। केंद्र में पासवान की जगह मंत्री बनने की चिराग की चाहत भी बहुत कुछ चुनाव में प्रदर्शन से ही तय होगी।
चुनाव में भाजपा के साथ जदयू के खिलाफ की रणनीति खुद चिराग की थी। जैसे साल 2014 के लोकसभा चुनाव में चिराग के ही दबाव में पासवान राजग में शामिल हुए। हालांकि तब पार्टी की कमान पासवान के पास थी और पासवान के रहते पार्टी की विरासत पर सवाल उठाने की स्थिति नहीं आनी थी। अब पासवान के निधन के बाद परिस्थिति बदली हुई है।
पासवान के भाई पशुपति पारस से चिराग के मतभेद हैं। चिराग को पार्टी की कमान देने से पशुपति खुश नहीं थे। जाहिर तौर पर अगर चुनाव के नतीजे मनमाफिक नहीं आए तो लोक जनशक्ति पार्टी के भीतर ही बगावत के सुर तेज होंगे।
चुनाव से ठीक पहले पासवान के निधन से जदयू की मुसीबत बढ़ गई है। सीएम नीतीश कुमार ने बेहद चतुराई से महादलित कार्ड खेल कर राज्य में दलितों के बीच लोजपा का आधार कम किया था। हम के मुखिया जीतनराम मांझी को अंतिम समय में साधने की मुख्य वजह लोजपा को दलितों में आधार नहीं बनाने देने की थी।
अब पासवान के निधन से उपजी सहानुभूति दलित बिरादरी के सभी कुनबे को लोजपा के पक्ष में एक कर सकती है। जदयू की दूसरी परेशानी भाजपा की ओर से लोजपा पर सीधा हमला बोलने से बचने की रही है।
गठबंधन की घोषणा के पहले भाजपा ने नीतीश को पासवान की अस्वस्थता का हवाला देते हुए लोजपा को राजग से बाहर करने की मांग ठुकरा दी थी। अब जबकि पासवान का निधन हो चुका है। ऐसे में भाजपा और जदयू दोनों लोजपा के खिलाफ तीखा हमला बोलने की स्थिति में नहीं हैं। भाजपा को लोजपा पर हमला नहीं करने का बड़ा बहाना मिल गया है।
लोजपा ने अपने पहले चरण के लिए घोषित 42 उम्मीदवारों की सूची में भाजपा के छह बागियों को टिकट दिया है। पासवान के निधन के बाद टिकट पाने में नाकाम भाजपा नेताओं का लोजपा की शरण में जाने का सिलसिला और तेज हो सकता है क्योंकि आम धारणा है कि अब लोजपा के पक्ष में दलित वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है।
दूसरे मोर्चे की तरफ आकर्षित हो रहे बागी नेताओं की भी बाकी चरणों में अब विचारधारा और सहानुभूति लहर को देखते हुए लोजपा पहली पसंद हो सकते हैं। ऐसे में लोजपा को बैठे-बिठाए मजबूत दावेदार मिल जाएंगे।