अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा है कि चीन ने भारत के साथ लगने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को अपने कब्जे में करने का प्रयास किया है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि समय आ गया है जब इस बात को स्वीकार किया जाए कि बातचीत और समझौते के जरिए बीजिंग के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आएगा।

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में पिछले पांच महीनों से सीमा पर गतिरोध जारी है। इसके कारण दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। दोनों पक्षों ने सीमा विवाद का हल निकालने के लिए उच्च स्तरीय राजनयिक और सैन्य वार्ता की। हालांकि कई दौर की बातचीत के बाद भी इसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकल पाया है।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने इस हफ्ते की शुरुआत में यूटा में चीन पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘चाइनिज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का भारतीय सीमा पर क्षेत्रीय आक्रमण स्पष्ट है, जहां चीन ने एलएसी पर कब्जा करने का प्रयास किया है।’ बता दें कि 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद चल रहा है।
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है, जबकि भारत इसका विरोध करता है। ओ ब्रायन ने कहा कि ताइवान स्ट्रेट में भी चीनी क्षेत्रीय आक्रमण दिखता है जहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की नौसेना और वायुसेना सैन्य अभ्यास की धमकी देते हैं।
उन्होंने कहा, ‘बीजिंग के महत्वकांक्षी अंतरराष्ट्रीय विकास कार्यक्रम, वन बेल्ट वन रोड में गरीब कंपनियां चीनी कंपनियों से निरंतर और अपारदर्शी कर्ज लेती हैं। इसमें चीनी मजदूर ढांचे का निर्माण करते हैं। इनमें से कई परियोजनाएं अनावश्यक, घटिया तरीके से निर्मित हैं।’
अमेरिकी राष्ट्रीय सलाहकार ने कहा, ‘अब इन देशों की चीनी ऋण पर निर्भरता उनकी संप्रभुता को मिटा रही है और उनके पास कोई विकल्प नहीं है। उन्हें संयुक्त राष्ट्र में चीन की पार्टी लाइन पर चलते हुए वोट करना पड़ता है। यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि वार्ता और समझौते चीन को बदलने के लिए राजी या मजबूर नहीं कर सकते हैं।’
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