चीन की विस्तारवादी नीति और उसका अडि़यल रवैया दुनिया के कई देशों की आंखों में खटकने लगा है। चीन-अमेरिका और भारत-चीन के संबंधों में आई तल्खी को पूरी दुनिया देख ही रही है। ऐसे में ताइवान वो जरिया बन सकता है जो चीन के कदमों को रोकने या उसको साधने का जरिया बन सकता है। यूं भी चीन ताईवान और अमेरिका के बीच मजबूत होते संबंधों को लेकर बौखलाया हुआ है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि चीन ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा बताता आया है जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानता है। ऐसे में ताइवान के किसी भी ऐसे देश के साथ संबंधों का मजबूत होना जो चीन के खिलाफ खड़ा है ड्रैगन को रास नहीं आता है। बीते कुछ समय में चीन और ताईवान के बीच आपसी तनाव काफी बढ़ा है। कई बार चीन ने ताईवान को स्पष्ट शब्दों में इसको लेकर चेतावनी भी दी है।
ऐसे में किंग्स कॉलेज, लंदन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि भारत भी ताइवान के साथ अपने रिश्तों का मजबूत करना चाहता है और ताइवान की न्यू साउथ बॉण्ड पॉलिसी भी इसी दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। वहीं भारत भी एक्ट ईस्ट पॉलिसी को बढ़ावा दे रहा है। वैसे भी भारत कई मामलों में स्वाभाविक रूप से ताइवान का साझेदार है। पंत के मुताबिक मौजूदा समय की भी यही मांग है कि ताइवान से भारत के रिश्ते मजबूत हों। ये चीन को साधने का भी जरिया हो सकता है। उनके मुताबिक बीते कुछ वर्षों से जहां अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन का कद घट रहा है वहीं ताइवान का कद बढ़ा है।
कोविड-19 महामारी पर भी ताइवान ने सफलतापूर्वक काबू पाया है। उसके उठाए गए कदमों की पूरी दुनिया में सराहना हो रही है। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि दिसंबर 2017 में चीन और ताइवान के बीच एक एमओयू साइन किया गया था जिसको लेकिर चीन ने कड़ी टिप्पणी की थी जबकि ताइवान ने इससे संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम बताया था। आपको बता दें कि ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध न होने के बावजूद 1990 के दशक में तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव ने इन संबंधों को नई दिशा और मजबूती देने का काम किया था।
जहां तक ताइवान अमेरिका के संबंधों की बात है तो आपको बता दें कि हाल ही में जब अमेरिका के आर्थिक मामलों के वरिष्ठ मंत्री कीथ क्राच ताइवान के दौरे पर पहुंचे थे, तो इससे चीन बुरी तरह से बौखला गया था। उसकी बौखलाहट उसके उठाए गए कदमों में भी दिखाई दी थी। कीथ के ताइपे पहुंचने वाले दिन ही गुस्साए चीन ने अपने बम वर्षक विमान के साथ लड़ाकू विमानों को ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसाकर ये बताने की कोशिश की थी कि उसका ये कदम सही नहीं है।
हालांकि पंत मानते हैं कि चीन की इस गीदड़ भभकी से ताइवान पर कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं दिया। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ताइवान ने चीन के लड़ाकू विमानों को अपनी हवाई सीमा से बाहर खदेड़ने में कोई देरी नहीं की थी। आपको बता दें कि कीथ बीते चार दशकों में ताइवान का दौरा करने वाले अमेरिकी विदेश विभाग के सबसे सीनियर अधिकारी हैं।
कीथ के दौरे पर चीन ने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन पर निशाना साधते हुए कहा था कि अमेरिका के नजदीक जाकर वो आग से खेल रही हैं। हालांकि वो इस तरह का बयान पहली बार नहीं दे रहा है। 2017 में ताइवान-भारत के बीच जो एमओयू साइन किया गया था उस वक्त भी ऐसा ही बयान चीन की तरफ से आया था। चीन ने सीधेतौर पर ताइवान को ये कहते हुए धमकी दी थी कि यदि किसी भी सूरत से उसने चीन से अलग होने की सोची तो वो युद्ध करने से पीछे नहीं हटेगा। ताईवान अमेरिका के बीच घनिष्ठ होते संबंधों के मद्देनजर चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से ये तक कहा गया था कि ताइवान जलडमरूमध्य में किसी तरह की कोई विभाजन रेखा नहीं है और वो चीन का अभिन्न अंग है।
चीन पर ताइवान की दादागिरी और उसके अडि़यल रवैये पर पंत का कहना है कि ताइवान ने हॉंगकॉंग का हश्र देखा है। वो नहीं चाहता है कि उसके साथ भी यही हो। इसलिए वो चीन की कम्यूनिस्ट सरकार के साथ जाने को कतई तैयार नहीं होगा। वहीं चीन से दूरी बनाने में अमेरिका उसका पूरा साथ दे रहा है। बीते कुछ वर्षों में चीन और अमेरिका के बीच आई दूरी भी इसकी एक बड़ी वजह है। पंत का ये भी कहना है कि 2019 में भी अमेरिका ने ताइवान को एफ-16 के 66 लड़ाकू विमान बेचने की घोषणा की थी। कुछ समय पहले भी दोनों देशों के बीच एक रक्षा सौदे के होने की खबर आई थी। पंत मानते हैं कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन के मुद्दे को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी भुनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। ताइवान के मुद्दे पर चीन की एक बड़ी परेशानी ये भी है कि राष्ट्रपति पद के लिए खड़े डेमोक्रेट पार्टी के जो बिडेन भी इस मुद्दे पर पूरी तरह से ताइवान और ट्रंप का साथ देते नजर आ रहे हैं।