रामनगरी अयोध्या में सजे धर्म-आस्था के मंच से बुधवार को राजनीति की बात नहीं हुई। राजनीतिक जमावड़ा भी नहीं था, लेकिन माना यही जा रहा है कि श्रीराम की धरती से गूंजी शंखध्वनि 2022 के चुनावी कुरुक्षेत्र तक सुनाई देगी।
श्रीराम मंदिर भूमिपूजन की तिथि घोषित होने के दिन से ही ‘सबके राम’ शब्द के तेज हुए जाप के अपने मायने हैं। ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष जिन सेक्युलरों के कानों में कोलाहल मचाता रहा, वह ‘सबके राम’ के सहारे मध्य-मार्ग में आ खड़े होना चाहते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के ‘कन्फ्यूजन’ के बीच उस ‘विजन’ पर चलना चाहते हैं, जहां से भाजपा को ढांचा विध्वंस के बाद जैसे चुनाव परिणाम की काट मिले।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद श्रीराम मंदिर निर्माण हो रहा है, लेकिन भाजपा के चुनावी एजेंडे में यह दशकों से शामिल रहा, इसलिए चाहकर भी उसे श्रेय से वंचित नहीं किया जा सकता। बेशक, भाजपा न कहे लेकिन अनुष्ठान और संघर्ष के फल को वह पाना ही चाहेगी। ज्यों-ज्यों मंदिर आकार लेगा, त्यों-त्यों उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव-2022 भी करीब आते जाएंगे। मंदिर निर्माण साढ़े तीन वर्ष में पूरा होना संभावित है। इस तरह चुनाव तक मंदिर भाजपा या उसके विचार परिवार के संकल्प सिद्धि और राजनीतिक इच्छाशक्ति के प्रतीक के रूप में खड़ा नजर आएगा।
भूमिपूजन के बाद मंच से संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी दल और राजनीति की बात किए ही मानो भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव का विजय मंत्र अपने शब्दों में गढ़ते चले गए। उन्होंने कहा जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, जिस तरह छोटे-छोटे ग्वालों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने में बड़ी भूमिका निभाई, जिस तरह मावले, छत्रपति वीर शिवाजी की स्वराज स्थापना के निमित्त बने, जिस तरह गरीब-पिछड़े, विदेशी आक्रांताओं के साथ लड़ाई में महाराजा सुहेलदेव के संबल बने, जिस तरह दलित-पिछड़़ों-आदिवासियों, समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गांधीजी को सहयोग दिया, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का यह बड़ा पुण्य-कार्य प्रारंभ हुआ है।
पीएम मोदी इस दौरान नानक-कबीर को भी याद किया। वह बार-बार ‘सबके राम’ दोहराते रहे। यहां वंचित, शोषित, दलित समाज को धार्मिक अनुष्ठान में सहयोग का श्रेय देने के गहरे निहितार्थ हैं। दरअसल, 1992 में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया। उस वक्त भाजपा हिंदुत्व की पताका थामे थी। उसी दौर में मंडल कमीशन बना था, जिससे दलित, वंचित और शोषित समाज का सीधा जुड़ाव था। वह हिंदुत्व की नैया से उतरकर मायावती-मुलायम की जातिवाद की नाव में जा बैठा। यही कारण रहा कि राम लहर के बावजूद 1993 में भाजपा उत्तरप्रदेश में सरकार नहीं बना सकी और माया-मुलायम गद्दी पा गए।
हालांकि, उसके बाद मध्यमार्गीय रास्ते पर चलने वाली कांग्रेस और जनता दल हाशिए पर जाते गए। धर्म और जाति के द्वंद्व के बीच पूर्ण बहुमत की सरकार तब बनी जब 2007 में बसपा प्रमुख मायावती ने धर्म उद्घोषक कहे जाने ब्राह्मणों को अपने मजबूत जातीय समीकरण में शामिल किया। ऐसे में मोदी के भाषण से स्पष्ट है कि अगला चुनाव 1993 की तरह सिर्फ हिंदुत्व के सहारे नहीं होगा।
मोदी के सबका साथ, सबका विकास मंत्र को ही यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी आगे बढ़ाया है और भगवा ब्रांड वह हैं ही। ऐसे में इसे अगले चुनाव के लिए अभेद्य किले का शिलान्यास भी भाजपा मान सकती है। उधर, सबके राम कहकर कांग्रेस यह प्रयास करना चाहती है कि भाजपा इसका श्रेय लेकर आगे न बढ़ सके। इधर, सपा-बसपा भी बीच के रास्ते से ही मंजिल पाना चाहती हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता विजेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि जब मंदिर का विरोध कोई दल नहीं कर रहा है तो भाजपा इसे मुद्दा बनाकर लाभ भी नहीं ले सकती।