सियासत की मजबूरी कहा जाए या मौजूदा वक्त की जरूरत. राम मंदिर मुद्दे के बहाने बीजेपी को घेरने वाली कांग्रेस पर भगवा रंग चढ़ता दिख रहा है. अयोध्या में पांच अगस्त को भूमि पूजन और राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने के साथ ही कांग्रेस के सुर बदल गए हैं. कांग्रेस खुलकर रामलला के समर्थन में खड़ी नजर आ रही है. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी सहित कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को यह बात समझ आने लगी है कि राम के बिना उनकी राजनीतिक नैया पार होने वाली नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राम मंदिर मुद्दे पर अभी तक कांग्रेस कन्फ्यूज रही है.
कांग्रेस नेता इतिहास के पुराने पन्ने पलटकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ही राम मंदिर की पहल की थी. राजीव गांधी ने ही राम मंदिर का ताला खुलवाया था और पूजा शुरू करवाने से लेकर शिलान्यास की अनुमति दी थी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भूमि पूजन से एक दिन पहले शुभकामनाएं देकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए भी लाइन तय कर दी ताकि, कोई भ्रम की स्थिति नहीं रहे.
भूमि पूजन के बाद बुधवार को राहुल गांधी शिव भक्त से राम भक्त में रंगे नजर आए. राहुल ने कहा कि भगवान राम मन की गहराइयों में बसी मानवता की मूल भावना हैं और वह कभी घृणा एवं अन्याय में प्रकट नहीं हो सकते. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सर्वोत्तम मानवीय गुणों का स्वरूप हैं. वे हमारे मन की गहराइयों में बसी मानवता की मूल भावना हैं. राम प्रेम हैं. वह कभी घृणा में प्रकट नहीं हो सकते. राम करुणा हैं. वह कभी क्रूरता में प्रकट नहीं हो सकते.राम न्याय हैं और वह कभी अन्याय में प्रकट नहीं हो सकते.
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि राम मंदिर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश की राजनीति में पिछले तीन दशकों से अहम मुद्दा रहा है. यूपी की प्रभारी होने के नाते प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे पर बीजेपी को बढ़त लेने से रोकने की कोशिश की है. कांग्रेस ने यह बताने की कवायद की है कि राम मंदिर बीजेपी सरकार नहीं बल्कि अदालत के आदेश पर बनाया जा रहा है. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते राम मंदिर से जुड़े तमाम समस्याएं हल हुई हैं, जिसे बाद में नरसिम्हा राव सरकार ने आगे बढ़ाया. ऐसे में कांग्रेस का यह कन्फ्यूजन नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.
वहीं, संघ विचारक और राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा कहते हैं दोहरापन कांग्रेस के चरित्र का हिस्सा बन गया है. सत्ता को पाने के लिए अपनी विचाराधारा से भी कांग्रेस समझौता करती जा रही है. कांग्रेस को राम मंदिर मामले में हमेशा कन्फ्यूजन रहा है. यह उनकी राजनीतिक अवसरवादिता थी और सत्ता को पाने के लिए कांग्रेस मंदिर के समर्थन में खड़ी होना चाहती है. वो कहते हैं कि कांग्रेस पिछले दो दशक से अपनी विचाराधारा के संकट से जूझ रही है. विचाराधारा में आई गिरावट के चलते ही उसके कार्यकर्ता भी दूर हुए हैं. कांग्रेस का सामाजिक जनाधार भी पूरी तरह से खिसक गया है. ऐसे में कांग्रेस बेचैन नजर आ रही है.
वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश कहते हैं कि कांग्रेस की स्थिति बहुत पेचीदा हो गई. अब तक वो जिस मुद्दे पर बीजेपी को घेरते रहे अब बात उस मुद्दे के समर्थन में खड़ी है. देश में राम मंदिर को लेकर जिस तरह जनसमर्थन है. ऐसे में कांग्रेस के सामने केवल एक ही विकल्प बचता था कि वो खुद को राम मंदिर निर्माण के समर्थन में खड़ी दिखाए. कांग्रेस विपक्षी दल होने के नाते राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में मोदी सरकार को घेरेगी, लेकिन हिंदू भावनाओं वाले मुद्दे पर समर्थन में खड़ी होकर एक राजनीति संदेश देने की रणनीति बनाई है.
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने अपने रुख में बदलाव करना शुरु किया. गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अलग-अलग मंदिरों का दौरा किया और उनकी छवि शिव भक्त के तौर पर सामने आई. प्रियंका गांधी ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर प्रयाग के हनुमान मंदिर में जाकर दर्शन कर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की थी.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय कहते हैं कि राम मंदिर पर कांग्रेस का समर्थन कोई नई बात नहीं है. 1949 में विवादित जगह पर मूर्ति रखी गई तो नेहरू उसे हटवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. राजीव गांधी ने खुद जिस तरह ताला खुलवाने से लेकर शिलान्यास में अहम भूमिका निभाई है. उससे कांग्रेस कैसे अपने आपको अलग रख सकती है. कांग्रेस के साथ बस यह हुआ था कि जिस प्लेट में रखे भोजन को धीरे-धीरे चुग रही थी उसे प्लेट को बीजेपी ने झपट लिया. अब कांग्रेस कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन राम मंदिर का क्रेडिट बीजेपी से नहीं छीन सकती है.