उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण पर मीडिया की खबर का बड़ा असर हुआ है. मीडिया की स्पेशल रिपोर्ट पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से 28 जुलाई तक रिपोर्ट तलब की है. चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस एसडी सिंह की डिवीजन बेंच में सुनवाई के दौरान आदेश दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ. अभिषेक अत्रे ने ईमेल से चीफ जस्टिस गोविंद माथुर को पत्र भेजा था. चित्रकूट में नाबालिग लड़कियों से अनैतिक कार्य पर याचिका डाली गई थी.
मीडिया ने अपनी खबर में दिखाया था कि कैसे नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण हो रहा है और उनसे बाल मजदूरी कराई जा रही है.
याचिका में नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण और बाल मजदूरी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन का आरोप है. इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने चित्रकूट के डीएम और विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को जांच कर अलग-अलग रिपोर्ट 28 जुलाई तक तलब की है.
मीडिया ने ऑपरेशन नरकलोक के जरिए दिखाया था कि कैसे बुंदेलखंड के चित्रकूट में चंद रुपयों के लिए खनन के धंधे में लगे कुछ सफेदपोश मासूम बच्चियों का शोषण कर रहे थे.
गरीबी के मारे इन अभागे लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर सौ-डेढ़ सौ रुपये की मजदूरी देने के बदले कुछ दरिंदे चित्रकूट की इन मासूम बच्चियों का शोषण कर रहे थे.
मीडिया की पड़ताल में दर्द की ऐसी दास्तानें सामने आईं कि किसी की भी रूह कांप जाए. ऑपरेशन नरकलोक में आजतक ने दिखाया था कि कैसे दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करने वाली बेटियों को शाम को अपना मेहनताना हासिल करने के लिए रेप तक का शिकार होना पड़ता था.
इस खुलासे के बाद प्रशासन की नींद उड़ गई. जिस प्रशासन को कभी दिन के उजाले में इन बेटियों का दर्द नहीं दिखा, वो प्रशासन आधी रात को ही उनके गांव पहुंच गया.
लेकिन सवाल यह भी उठता है कि पुलिस प्रशासन आधी रात ही गांव में क्यों पहुंच गया औरगांव की बेटियों से पूछताछ में क्यों जुट गए.
मीडिया के इस खुलासे पर चित्रकूट प्रशासन पूरी तरह लीपापोती में जुट गया. चित्रकूट के जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय ने कहा था कि लड़कियों और महिलाओं ने ऐसी किसी बात से इनकार किया है.
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