इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जंग लड़ रही है और अधिकांश देशों में लॉकडाउन जारी है. लॉकडाउन की वजह से विश्व के साथ ही भारत पर भी भयंकर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में UN की जो रिपोर्ट सामने आई है उससे देश की परेशानी और बढ़ सकती है.
लॉकडाउन से जूझते हुए देश को आर्थिक मंदी से बचाए रखने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार हर संभव कोशिश कर रही है. हालांकि इस कोशिश के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था पर कोरोना का बुरा प्रभाव पड़ना तय है. यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की वजह से करीब 10 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे. इसका सबसे बड़ा कारण पूरे देश में आर्थिक गतिविधियों का पूरी तरह रुक जाना बताया गया है.
यूएन के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस को लेकर जो लॉकडाउन हुआ है, उस पर हाल ही में एक विश्लेषण किया है. इसी आधार पर आशंका जताई गई है कि भारत में 104 मिलियन (10 करोड़ से ज्यादा) से अधिक लोग विश्व बैंक द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा से नीचे चल जाएंगे. जिसका सीधा अर्थ हुआ कि वो बेहद गरीबी में जीने को मजबूर होंगे. यूएन के मुताबिक अभी जो लोग रोज 245 रुपये से कम कमाते हैं उन्हें गरीबी रेखा से नीचे रखा जाता है.
भारत में करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 81 करोड़ 12 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. अगर ऐसा होता है तो भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या 90 करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगी. शोध में इसका कारण कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुए हालात को बताया गया है. जो 60 फीसदी भारतीय अभी गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं यह बढ़कर 68 फीसदी तक पहुंच सकते हैं. बता दें कि एक दशक पहले भारत की यही स्थिति थी लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद गरीबी रेखा से बाहर आने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गरीबी कम करने के लिए सरकार के वर्षों के प्रयासों को महज इन कुछ महीनों (लॉकडाउन) ने गहरा धक्का पहुंचाया है. बता दें कि विश्व बैंक देशों को चार व्यापक आय श्रेणियों में वर्गीकृत करता है, जिसके आधार पर उन्हें तीन गरीबी रेखा के बीच बांटा जाता है. भारत निम्न मध्य आय वर्ग श्रेणी वाले देश में आता है.