चीन का वुहान शहर 76 दिनों के बाद लॉकडाउन से मुक्त हो गया है. पिछले साल दिसंबर से कोरोना वायरस की महामारी इस शहर से फैलनी शुरू हुई थी. 23 जनवरी के बाद से यह शहर लॉकडाउन था. 8 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म हो गया है. वहीं लॉकडाउन खत्म होने का मतलब ये नहीं है कि वुहान शहर को पूरी तरह से कोरोना वायरस से छुटकारा मिल गया हो. वहीं दूसरी ओर ये कहना भी गलत नहीं होगा कि चीन कोरोना संबंधित कई चीजों को छिपा रहा है.
ऐसे में वुहान शहर में रहने वाले एक फोटोग्राफर ने अपनी आपबीती बताई, उन्होंने बताया कैसे डॉक्टर लोगों को कोरोना वायरस भगाने की तरीके बता रहे थे. जिससे मरीजों को चोट भी पहुंच रही है. आइए विस्तार से जानते हैं. वुहान शहर में रहने वाले फोटोग्राफर ग्राहम (Graham) ने लॉकडाउन के बारे में आंखों देखा हाल बताया. उन्होंने बताया, कोरोना वायरस से उनका पूरा परिवार संक्रमित हो गया था.
उन्होंने कहा- सबसे पहले कोरोना वायरस के शिकार मेरे माता पिता हुए. जिसके बाद वायरस की चपेट में पूरा परिवार आ गया. फिर हमें पीपल्स अस्पताल में सात दिन तक भर्ती कराया था, इससे पहले कोरोना वायरस के मद्देनजर बनाए गए अस्पतालों में भेजा गया था. जिसे Square Cabin hospitals कहा जाता है. ये अस्पताल विशेष रूप से हल्के लक्षणों वाले कोरोना वायरस के मरीजों के लिए बनाए गए थे. ग्राहम ने यहां के डॉक्टर्स के बारे में बताया कि वह कैसे मरीजों का इलाज कर रहे थे.
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The Independent की रिपोर्ट के अनुसार ग्राहम ने अस्पताल की सुविधा, इलाज करने के तरीके के बारे में बताया. उन्होंने कहा, यहां के डॉक्टर्स ‘Traditional Chinese medicine’ (यानी चीन की पारंपरिक चीनी चिकित्सा पद्धति) में प्रशिक्षित थे. जिसके माध्यम से इलाज को प्रोत्साहित किया जा रहा था. जिसका कोई खास मतलब नहीं था.
ग्राहम ने बताया, यहां के डॉक्टर्स दावा करते हुए मरीजों से कहते कि घड़ी की सुईयों की दिशा में अपनी नाभि घुमाओ, ऐसा करने से शरीर से “वायरस” निकल जाएगा. यही नहीं, ग्राहम ने बताया डॉक्टर्स मरीजों को कोहनी पर मारने के लिए भी कहते थे. डॉक्टर का मरीजों से कहना था कि अपनी कोहनी पर जितनी तेज से मार सकते हैं मारते रहो. इससे “वायरस” उनके फेफड़ों से निकल जाएगा. ग्राहम ने कहा, मैं वहीं था, मुझे दिखता कि मरीज अपनी कोहनी पर दिनभर मार रहे हैं. चारों तरफ कोहनी पर मारने की आवाजें सुनाई देती थी. कई मरीजों ने अपनी कोहनी को इतना मारा कि उन्हें गहरी चोट आ गई. ये खतरनाक दृश्य था.
इस आपदा में रहने के दौरान मैंने देखा कि चीनी अधिकारियों ने बीमारी की रोकथाम के लिए क्रूर तरीके अपनाए हैं. मैं चीनी सरकार की हद देखकर हैरानी में पड़ गया था. कुछ परिवारों को मेरे सामने जबरदस्ती अलग कर दिया गया था, क्योंकि उन्हें उनके संक्रमण की गंभीरता के आधार पर विभिन्न अस्पतालों में भेज दिया था. मैंने देखा एक लड़का हमारे अस्पताल में अधिकारियों से विनती कर रहा था कि वह अपनी मां को एक बार देख सके, लेकिन आधिकारियों ने उसके बिस्तर पर हथकड़ी लगा दी और बांध दिया ताकि वह भाग न सके. बाद में लड़के की मां का नजदीकी अस्पताल में निधन हो गया.
ग्राहम कहते हैं कि इस महामारी ने मुझे एहसास दिलाया कि चीनी सरकार जब समाज पर नियंत्रण करने की कोशिश में किस हद तक जा सकती है. दो महीने के लॉकडाउन के दौरान ग्राहम कहा था कि- मुझे यह समझने में मदद मिली कि जब तक मैं चीन में रहूंगा, मैं कभी भी वास्तविक स्वतंत्रता का आनंद नहीं ले सकता और मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चों को समान जीवन मिले. मुझे लगता है कि समझदारी भरा निर्णय चीन को छोड़ना है, और लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मैं यही करना चाहता हूं..