जानिए कैसे कोरोना शरीर पर करता है अटैक, ऐसे बन जाता है सबसे खतरनाक

कोरोना वायरस से दुनिया भर में मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. तमाम वैज्ञानिक और हेल्थ एक्सपर्ट्स कोरोना वायरस को लेकर स्टडीज कर चुके हैं. कोरोना वायरस कई बार बड़े झुंड में तो कभी छोटे झुंड में इंसानों पर हमला करता है. अब एक स्टडी में वायरसों की संख्या और इससे जुड़े खतरे को सामने लाया गया है.

कोरोना वायरस जैसे जानलेवा वायरस के बारे में सबसे पहले बताने वाले चीन के डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत भी कोरोना वायरस से हुई थी. डॉक्टर ली वेनलियांग 34 साल की उम्र में इस वायरस से लड़ते हुए जिंदगी की जंग हार गए. डॉक्टर वेनलियांग की मौत से हर कोई चौंक गया था. डॉक्टर वेनलियांग Covid-19 से सबसे कम उम्र में मरने वाले पहले व्यक्ति थे. ये कहा जा सकता है कि पूरे समय कोरोना वायरस के मरीजों से घिरे होने के कारण डॉक्टर वेनलियांग इससे जल्दी संक्रमित हो गए और उनके शरीर में ये संक्रमण इतनी ज्यादा मात्रा में फैल गया कि उनकी मौत हो गई.

हर तरफ कोरोना वायरस की चर्चा के बीच इस वायरल डोज यानी संक्रमण की मात्रा को अनदेखा किया जा रहा है. अन्य विषाक्त पदार्थों की तरह ही अधिक संख्या वाले वायरस ज्यादा खतरनाक होते हैं. कम वायरसों के संपर्क में आने से हल्के लक्षण या कोई लक्षण नहीं दिखते हैं जबकि ज्यादा मात्रा में वायरसों के संपर्क में आना घातक हो सकता है.

कोरोना वायरस के सभी एक्सपोजर एक तरीके के नहीं होते हैं. उदाहरण के तौर पर, किसी ऐसी बिल्डिंग में जहां से संक्रमित व्यक्ति होकर गुजरा हो, जाना उतना खतरनाक नहीं है जितना कि ट्रेन में किसी कोरोना के संक्रमित व्यक्ति के बगल में बैठकर सफर करना है.

ये बहुत आम सी बात है लेकिन बहुत लोग इनके बीच के अंतर को नहीं समझ पा रहे हैं.  हमें हाई डोज के संक्रमण को रोकने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है. कम और ज्यादा दोनों मात्रा के वायरस हमारी कोशिकाओं के भीतर अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं और जिन लोगों की इम्यून पावर कमजोर है, उनमें गंभीर बीमारियां पैदा कर सकते हैं. हालांकि, स्वस्थ लोगों का इम्यून सिस्टम वायरस की भनक लगते ही तेजी से अपना काम शुरू कर देता है.

विशेषज्ञ इस बात को जानते हैं कि वायरसों की संख्या बीमारी की गंभीरता को और बढ़ा सकती है. लैब में चूहों पर की गई स्टडीज में भी कोरोना वायरस समेत हर सामान्य वायरल संक्रमण में वायरस की मात्रा का असर ज्यादा देखा गया है. मनुष्यों पर भी वायरल डोज का उतना ही असर होता है. कुछ वॉलंटियर्स प्रयोग के लिए सर्दी और डायरिया जैसी बीमारी पैदा करने वाले वायरसों के संपर्क में आए. जिन लोगों को वायरल डोज की कम मात्रा दी गई उनमें इंफेक्शन की लक्षण बहुत कम दिखे जबकि हाई डोज वाले लोगों में ज्यादा और गंभीर संक्रमण के लक्षण दिखे.

कोरोना वायरस में भी डोज का गंभीर असर देखने को मिलता है और इस बात के पुख्ता सबूत भी हैं. उदाहरण के लिए, 2003 में हॉन्गकॉन्ग में SARS कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान, एक मरीज ने अपार्टमेंट के एक ही परिसर में रहने वाले कई अन्य लोगों को भी संक्रमित कर दिया था जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई थी.

यह संक्रमण का हवा में फैलने वाले वायरल कणों की वजह से माना गया था जिसकी वजह से अपार्टमेंट का वो परिसर ज्यादा संक्रमित हो गया था, जहां वो मरीज रहता था. वायरल की ज्यादा मात्रा के संपर्क में आने के कारण ही उस बिल्डिंग के पड़ोसियों में भी संक्रमण फैलने लगा था जबकि दूसरी तरफ, इस बिल्डिंग से थोड़ी दूर रहने वाले लोग उतने संक्रमित नहीं थे.

कई प्रमाण होने के बावजूद, कोरोना वायरस महामारी के दौरान वायरल डोज के महत्व और गंभीरता की अनदेखी की जा रही है. लोगों को हाई-डोज एक्सपोजर को लेकर विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. हाई डोज एक्सपोजर की संभावना उन लोगों में ज्यादा होती है जो लोगों के बहुत करीब जा कर मिलते हैं. ये कॉफी मीटिंग, बार या  किसी बुजुर्ग के साथ एक कमरे में रहने से भी फैल सकता है. ये वायरस बड़ी मात्रा में हाथों में आ जाते हैं और जब  हम अपना चेहरा छूते हैं तो ये शरीर में फैल जाते हैं. इसीलिए, डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी वायरस संक्रमण का अधिक सावधान रहने की जरूरत होती है क्योंकि वे लगातार संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते रहते हैं.

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