वर्ष 1994 में भारत में चार विदेशी नागरिकों को अगवा कर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय जगत में लाने वाला और समाचार पत्र वाल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डेनियल पर्ल का हत्यारा अहमद उमर सईद शेख एक बार फिर आजाद हो जाएगा। पाकिस्तान के जेल में बंद उमर शेख को पहले वहां की आतंकरोधी अदालत ने मौत की सजा दी थी। जिसे बाद में एक स्थानीय अदालत ने घटा कर आजीवन करावास में बदल दिया था। गुरुवार को पाकिस्तान के सिंध प्रांत की उच्च न्यायालय ने आजीवन करावास की सजा को घटा कर सात वर्ष की सजा कर दी है। इसका मतलब यह हुआ कि पिछले 18 वर्षों से पाकिस्तान के एक बेहद सुरक्षित जेल में बंद उमर शेख को रिहा किया जा सकता है। पाकिस्तान सरकार वैसे इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।
सिंध कोर्ट के फैसले ने साफ कर दिया है कि पड़ोसी देश में आतंकवादी संगठनों व कुख्यात आतंकियों को सजा दिलाने को लेकर गंभीरता से नहीं लिया जाता। कुछ महीने पहले ही भारत में कई आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले हाफिज सईद को भी रिहा किया गया है। जबकि हाफिज सईद के सहयोगी व मुंबई हमले के मुख्य साजिशकर्ता जकी उर रहमान लखवी पहले ही रिहा हो चुका है। अब देखना है कि पाकिस्तान सरकार सिंध हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायाल में अपील करती है या नहीं।
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उमर शेख को दुनिया में भले ही डेनियल पर्ल के हत्यारे के तौर पर जाना जाता है लेकिन इसका भारतीय कनेक्शन इससे भी पुराना है। वर्ष 1999 के अंत में आतंकवादियों ने भारत के सरकारी क्षेत्र की विमानन कंपनी इंडियन एयरलाइंस आईसी 814 को अपह्रत कर लिया था। जहाज में अपने नागरिकों को छुड़ाने के लिए तत्कालीन एनडीए सरकार ने तीन कुख्यात आतंकियों को छोड़ा था जिसमें मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर के साथ ओसामा शेख को छोड़ा गया था। तब ओसामा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित जेल में भारत में चार विदेशी नागरिकों के अपहरण करने के जुर्म में सजा काट रहा था।
असलियत में ओसामा शेख व मसूद अजहर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की तरफ से भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने की योजना के साथ भेजे गये थे। विदेशी नागिरकों का अपहरण इनकी योजना का हिस्सा था ताकि कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाया जा सके। बाद में सीआइए की तरफ से गिरफ्तार आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने भारतीय एजेंसियों के समक्ष ओसामा शेख के बारे में कई चीजों का खुलासा किया कि किस तरह से वह पाकिस्तान सेना व खुफिया एजेंसी के बड़े अधिकारियों से लेकर अल-कायदा के बड़े लोगों व उनके भारतीय एजेंटों के बीच एक पुल के तौर पर काम करता रहा है।
भारतीय अधिकारियों की तरफ से रिहा किए जाने के बाद उमर शेख व मसूद अजहर का इस्तेमाल पाकिस्तान की आइएसआइ ने अलग अलग तरीके से किया। अजहर ने जैश-ए-मोहम्मद का गठन कर भारत को हजारों जख्म देने की रणनीति को आगे बढ़ाया तो उमर शेख ने अल कायदा के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद के नेटवर्क को मजबूत करने में जुट गया था। अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के आतंकी हमले के लिए धन जुटाने में उमर शेख की अहम भूमिका रही।