भारत में कोरोना वायरस का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है और देश में 1000 हजार से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं. इस जानलेवा वायरस की वजह से अब तक 20 से ज्यादा लोगों की जान भी जा चुकी है. ऐसे में दूसरे राज्यों से घर लौटने वाले लोगों को डॉक्टरों की तरफ से क्वारंटाइन (एकांत) में रहने को कहा गया है ताकि संक्रमण ने फैल जाए. लेकिन पश्चिम बंगाल में चेन्नई से आए कुछ लोगों को जिस तरह गांव के बाहर क्वारंटाइन कराया जा रहा है उसे जानकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे.
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के भंगड़ी गांव में बीते पांच दिनों से सात युवक गांव के बाहर पेड़ की शाखाओं पर क्वारंटाइन में हैं. जमीन से लगभग 8-10 फीट की ऊंचाई पर लकड़ी के तख्तों को बांधने के लिए बांस के बल्लों का इस्तेमाल किया गया है.
आम के पेड़ पर बांधे गए हर खाट को एक प्लास्टिक शीट और एक मच्छरदानी द्वारा कवर किया गया है. रात में रोशनी और मोबाइल चार्ज करने के लिए पेड़ पर ही प्लग लगा दिया गया है जहां ये लोग अपने फोन को चार्ज करते हैं. उन्हें मास्क भी दिए गए हैं. गांव में अपने परिवार से अलग रह रहे ये सभी युवक शौचालय जाने, स्नान करने और खाने के लिए ही पेड़ से नीचे उतर सकते हैं.
गांव से बाहर पेड़ पर रह रहे ये सभी सात युवक श्रमिक हैं और चेन्नई में काम करते थे. लॉकडाउन से ठीक पहले ये चेन्नई से ट्रेन के जरिए अपने गांव पहुंच गए लेकिन गांव के लोगों ने कोरोना वायरस के डर से इन्हें गांव में प्रवेश करने से रोक दिया. तब से ये लोग पेड़ पर ही रह रहे हैं.
ये मजदूर चेन्नई से ऐसे समय में लौटे जब देश में कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है. डॉक्टरों ने उन्हें घर में क्वारंटाइन रहने को कहा था लेकिन वायरस फैलने के डर से ग्रामीणों ने इन सभी के लिए गांव से बाहर आम के पेड़ पर रहने की व्यवस्था कर दी.
आम के पेड़ पर रहने वाले इन सातों में से एक शख्स ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम अपना ज्यादातर समय पेड़ पर बिताते हैं. हम शौचालय का उपयोग करने के लिए, कपड़े धोने और भोजन करने के लिए नीचे उतरते हैं. ऐसा इसलिए किया गया है ताकि हम पूरी तरह से अलग-थलग हो जाएं और गांव में किसी के लिए जोखिम न बनें. हम ग्रामीणों की ओर से कही हर बात का ध्यान रख रहे हैं.’