छत्तीसगढ़ में ग्राम न्यायालय की स्थापना न किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही सभी राज्यों को ग्राम न्यायालय स्थापना की अद्तन स्थिति के बारे में शपथपत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

केंद्र सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 को पारित करते हुए दो अक्टूबर 2009 से ग्राम न्यायालय की स्थापना का आदेश देशभर के सभी राज्यों को जारी किया था।
अधिसूचना के बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे लागू नहीं किया। लोगों को जागरुक करने और राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए नेशनल फेडरेशन सोसायटी ने वर्ष 2016 में अंबिकापुर से रायपुर तक जनजागरण अभियान चलाया था।
इसके बाद भी जब राज्य सरकार ने ग्राम न्यायालय की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी नहीं की तब जुलाई 2019 में नेशनल फेडरेशन सोसायटी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर देश के अन्य राज्यों सहित छत्तीसगढ़ में ग्राम न्यायालय के स्थापना की मांग की।
साथ ही इस बात की भी शिकायत दर्ज कराई गई कि जनजागरण अभियान चलाने के बाद भी राज्य सरकार ने इस संबंध में अधिसूचना जारी नहीं की है।
याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संस्था के प्रमुख पदाधिकारी प्रवीण पटेल ने बताया कि प्रारंभिक सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सहित नौ राज्यों ने हलफनामा पेश किया था।
छत्तीसगढ़ सरकार ने स्वीकार किया कि ग्राम न्यायालय की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी नहीं की गई है। छग सरकार के जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के निर्देशों के बाद भी अधिसूचना जारी करने में विलंब के चलते एक लाख स्र्पये का जुर्माना लगाया है।
चार से पांच ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक ग्राम न्यायालय की स्थापना करनी है। ग्रामीणों के छोटे-छोटे मामले जो सिविल कोर्ट के साथ ही निचली अदालतों में लंबित हैं।
उनका निराकरण किया जाएगा। झूठी गवाही पर भी रोक लगेगी। ग्रामीण आपस में एक दूसरे को पहचानते हैं। ऐसी स्थिति में झूठी गवाही के लिए किसी अन्य व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकेगा। ग्राम न्यायालय में पुलिस और वकील की भूमिका नहीं होती।
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