फागुन का नाम किसी के भी मन में उल्लास का संचार करने के लिए काफी है। भारत में प्रचलित सभी महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि भीतर तक गुदगुदाने वाली ऋतुएं नक्षत्रों के प्रभाव से या उनकी स्थिति के कारण आती हैं। फागुन माह को रंग, तरंग और उमंग का महीना कहा जाता है।
ब्रह्मा और विष्णु के आग्रह को मानकर कामदेव ने शिव की समाधि भंग की और शिव का तीसरा नेत्र खुलने पर भस्म हो गए। कहा जाता है कि कामदेव के भस्म होने की घटना फागुन में ही घटी थी।
कामदेव के भस्म होने से विषण्ण होकर रति ने शिव की शरण ली और प्रार्थना की कि कामदेव का अनंग रूप चित्त में रहे। वसंत का आगमन भले ही माघ में हो, लेकिन उसका ज्वार फागुन में ही उठता है।
वसंत के देव कामदेव हैं। फागुन के देवता कृष्ण और शिव दोनों हैं। कामदेव राग-रंग तथा कृष्ण आनंद और उल्लास के प्रतीक हैं। ये भाव नियंत्रित न हों तो संकट उत्पन्न होता है। आनंद के अनियंत्रित आवेग को शिव नियंत्रित करते हैं। फागुन में काम और विश्राम का अनोखा संतुलन है।