भगवान गणेश की आराधना से मानव की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और उसके संकटों का नाश होता है। श्रीगणेश को सिद्धिदाता और विघ्न का विनाश करना वाला माना जाता है।
सभी देवों में उनको प्रथम पूज्यनीय कहा जाता है, क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में उनकी सबसे पहली पूजा का विधान है। श्रीगणेश की पूजा किसी भी दिन करना शुभ फलदायी होता है, लेकिन कुछ विशेष अवसरों पर इनकी आराधना करने से मानव की मनोकामनाएं जल्द पूरी हो जाती है। ऐसी ही एक विशेष तिथि संकष्टी चतुर्थी है। फरवरी महीने में संकष्टी चतुर्थी 12 फरवरी बुधवार को है।
हर मास में दो चतुर्थी तिथि आती है। इसमें शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर श्रीगणेश पूजा करने का विधान है।
संकष्टी चतुर्थी को विधि – विधान से श्रीगणेश की पूजा करने से भगवान गजानन की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इसके साथ ही स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का भी अंत होता है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठ जाएं और नित्यकर्म से निवृत्त होकर हल्के पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें। पूजास्थल पर आसन गृहण करें।
श्रीगणेश की प्रतिमा को एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। श्रीगणेश की चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी मेंहदी, अक्षत, वस्त्र, जनेऊ, फूल आदि से पूजा करे।
दुर्वा, मोदक, लड्डू, फल, पंचमेवा और पंचामृत समर्पित करें। दीपक जलाकर धूपबत्ती जलाएं और आरती करें। पूजा के समय श्रीगणेश के मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें। साथ ही श्रीगणेश के शास्त्रोक्त मंत्रो का जप करें।