सुभाष की मनोदशा उस दौरान किस तरह की थी, ये अप्रैल या मई, 1937 में एमिली को भेजे एक पत्र से जाहिर होता है, जो उन्होंने कैपिटल अक्षरों में लिखा है। उन्होंने लिखा था, ‘पिछले कुछ दिनों से तुम्हें लिखने को सोच रहा था, लेकिन तुम समझ सकती हो कि मेरे लिए तुम्हारे बारे में अपने मनोभावों को लिखना कितना मुश्किल था। मैं तुम्हें केवल ये बताना चाहता हूं कि जैसा मैं पहले था, वैसा ही अब भी हूं। एक भी दिन ऐसा नहीं बीता है, जब मैंने तुम्हारे बारे में नहीं सोचा था। तुम हमेशा मेरे साथ हो। मैं किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता। मैं तुम्हें ये भी नहीं बता सकता कि इन महीनों में मैं कितना दुखी रहा, अकेलापन महसूस किया। केवल एक चीज मुझे खुश रख सकती है, लेकिन मैं नहीं जानता कि क्या ये संभव होगा। इसके बाद भी दिन रात मैं इसके बारे में सोच रहा हूं और प्रार्थना करता हूं कि मुझे सही रास्ता दिखाएं।’
इन पत्रों में जाहिर अकुलाहट के चलते ही जब दोनों अगली बार मिले तो सुभाष और एमिली ने आपस में शादी कर ली। ये शादी कहां हुई, इस बारे में एमिली ने कृष्णा बोस को बताया कि 26 दिसंबर, 1937 को, उनकी 27वीं जन्मदिन पर ये शादी आस्ट्रिया के बादगास्तीन में हुई थी, जो उन दोनों का पसंदीदा रिजार्ट हुआ करता था। हालांकि दोनों ने अपनी शादी को गोपनीय रखने का फैसला किया। कृष्णा बोस के मुताबिक एमिली ने शादी का दिन बताने के अलावा कोई दूसरी जानकारी नहीं शेयर की। हां, अनीता बोस ने उन्हें ये जरूर बताया कि उनकी मां ने ये बताया था कि शादी के मौके पर उन्होंने आम भारतीय दुल्हन की तरह माथे पर सिंदूर लगाया था।
ये शादी इतनी गोपनीय थी कि उनके बादगास्तीन रहने के दौरान ही उनके भतीजे अमिय बोस भी उनसे मिलने पहुंचे थे, लेकिन उन्हें एमिली महज अपने चाचा की सहायक भर लगी थीं। इस शादी को गोपनीय रखने की संभावित वजहों के बारे में रुद्रांशु मुखर्जी ने लिखा है कि बहुत संभव रहा होगा कि सुभाष इसका असर अपने राजनीतिक करियर पर नहीं पड़ने देना चाहते होंगे। किसी विदेशी महिला से शादी की बात आने पर उनकी छवि पर असर पड़ सकता था। रुद्रांशु की इस आशंका को इस परिपेक्ष्य में भी देखना चाहिए कि 1938 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। शरत चंद्र बोस के सचिव रहे और अंग्रेजी के प्रख्यात लेखक नीरद सी. चौधरी ने 1989 में दाय हैंड ग्रेट अर्नाक: इंडिया 1921-1951 में लिखा है, ‘ये उनके निजी जिंदगी से जुड़ा हिस्सा था, लेकिन जब मुझे जानकारी मिली तब मुझे झटका लगा।’
सुभाष अपनी बेटी को देखने के लिए दिसंबर, 1942 में विएना पहुंचते हैं और इसके बाद अपने भाई शरत चंद्र बोस को बंगाली में लिखे खत में अपनी पत्नी और बेटी की जानकारी देते हैं। इसके बाद सुभाष उस मिशन पर निकल जाते हैं, जहां से वो फिर एमिली और अनीता के पास कभी लौट कर नहीं आए। लेकिन एमिली सुभाष चंद्र बोस की यादों के सहारे 1996 तक जीवित रहीं और उन्होंने एक छोटे से तार घर में काम करते हुए सुभाष चंद्र बोस की अंतिम निशानी अपनी बेटी अनीता बोस को पाल पोस कर बड़ा कर जर्मनी का मशहूर अर्थशास्त्री बनाया। इस मुश्किल सफर में उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के परिवार से किसी तरह की मदद लेने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने जिस गोपनीयता के साथ अपने रिश्ते की भनक दुनिया को नहीं लगने दी थी, उसकी मर्यादा को भी पूरी तरह निभाया।