यीशु के जन्म का पर्व क्रिसमस डे बुधवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। क्रिसमस ईसाईयों को सबसे बड़ा त्योहार है और 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में क्रिसमस मनाया जा रहा है। हालांकि, 25 दिसंबर इसलिए ही खास नहीं है। इस तारीख को भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी, गुलाम भारत में शिक्षा की लौ जगाने वाले महामना मदनमोहन मालवीय का जन्मदिन भी है।
अटल बिहारी वाजपेयी(राजनीति के शिखर पुरुष)
कवि, पत्रकार और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 1924 में आज ही मध्यप्रदेश में हुआ था। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक किया। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर के लिए कानपुर के डीएवी कॉलेज गए। यहां उनके पिता ने भी दाखिला लिया और दोनों हॉस्टल के एक ही कमरे में रहते थे।
1942 में 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य बने। 1951 में बनीं जनसंघ पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक रहे। 1975 में लगी इमरजेंसी के दौरान जेल गए। 1977 में विदेश मंत्री होने के नाते उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय नेता थे। वे वीर रस के कवि थे। उनकी कविताएं निराशा और अंधकार में उम्मीद और रोशनी की लौ जलाती हैं।
तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल जी ने 1999 में पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों द्वारा कारगिल की चोटियों पर कब्जा किए जाने के बाद जून में ऑपरेशन विजय को हरी झंडी दी। तमाम प्रतिबंधों के बावजूद 1998 में पोखरण परीक्षण कराकर खुद को साहसी और सशक्त नेता के तौर पर स्थापित किया। 1992 में पद्म विभूषण और 2015 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए। 16 अगस्त, 2018 को दुनिया को अलविदा कह गए।
मदनमोहन मालवीय (ज्ञान के महामना)
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक के रूप में मशहूर महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म 1861 में आज ही इलाहाबाद में हुआ था। जब गुलाम भारत आजादी के सपने देख रहा था तो इस राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् ने ज्ञान की अलख जगाई। महात्मा गांधी इन्हें अपने बड़े भाई समान मानते थे। नेहरू इनको भारतीय राष्ट्रीयता की नींव रखने का श्रेय देते थे। सत्यमेव जयते के उद्घोष को इन्होंने ही लोकप्रिय किया।
1886 में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने भाषण दिया जिसे लोगों ने काफी सराहा। यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। चार बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। कई अखबारों का संपादन किया और वकालत भी की। देश के प्रमुख शिक्षा संस्थानों में शामिल बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की 1916 में स्थापना की। 12 नवंबर, 1946 को 84 साल की उम्र में देहांत हो गया। 2015 में भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया।