शिवसेना अब भी मान रही 30 नवंबर को राज्य में देवेंद्र फड़नवीस अपना बहुमत नहीं सिद्ध कर सकेंगे

शिवसेना अब भी मान रही है कि 30 नवंबर को राज्य में देवेंद्र फड़नवीस अपना बहुमत नहीं सिद्ध कर सकेंगे। इसके बाद उद्धव ठाकरे की सरकार बनेगी। यदि शिवसेना की यह उम्मीद पूरी न हुई तो उसे राज्य में बहुत बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं।

गुटों में बंट गई है शिवसेना

शिवसेना के विधायक पहले से ही दो गुटों में बंट चुके हैं। भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़े उसके ज्यादातर विधायक शांति से बनने वाली भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार की उम्मीद लगाए बैठे थे। इनमें कई विधायक तो पहली बार चुनकर आए हैं। उन्हें अभी तक शपथ तक लेने का अवसर नसीब नहीं हुआ है। होटल रीट्रीट में सामूहिक प्रवास के दौरान भी इन दोनों गुटों में टकराव की नौबत आ चुकी थी। बीच-बचाव करने और समझाने के लिए उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और स्वयं उद्धव को भी सामने आना पड़ा था। कांग्रेस-राकांपा के साथ जाने का विरोध कर रहे नवनिर्वाचित विधायकों को उनके विधानसभा क्षेत्र में ही विरोध का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन ये सभी विधायक अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री बनने की आस में शांत हो गए थे।

कांग्रेस और शिवसेना के विधायकों में भी लग सकती है सेंध

कांग्रेस-राकांपा के साथ मिलकर शिवसेना की सरकार बन जाती, तो ये विधायक शांति से पार्टी के साथ रह सकते थे, लेकिन अब समीकरण बदलते दिखाई दे रहे हैं। भाजपा सरकार बनाने के लिए सक्रिय हो गई है। माना जा रहा है कि भाजपा पिछले एक माह से चुप भले रही हो, लेकिन शांत तो नहीं बैठी होगी। ऐसी स्थिति में यदि राकांपा के साथ-साथ कांग्रेस और शिवसेना में भी सेंध लगा चुकी हो, तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। जरूरी नहीं कि अन्य दलों के ये विधायक राजभवन जाकर ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस का समर्थन करें। इनकी बड़ी संख्या सदन में बहुमत सिद्ध करते समय भी अपने मूल दल से बगावत कर सकती है। विधायक जानते हैं कि तीन छोटे दलों के गठबंधन की अपेक्षा सदन में सबसे बड़े दल की सरकार के साथ रहना ज्यादा सुरक्षित हो सकता है, क्योंकि अभी-अभी चुनाव लड़कर आया कोई विधायक जल्दी चुनाव नहीं चाहता।

भाजपा शिवसेना को उसी के शैली में जवाब देने को तैयार

ऐसी स्थिति में यदि देवेंद्र फड़नवीस अपनी सरकार का बहुमत सिद्ध करने में कामयाब रहे, तो शिवसेना को कई मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसका कारण यह है कि अब तक शिवसेना की वापसी की उम्मीद लगाए बैठी भाजपा के लिए अब 30 साल की दोस्ती का लिहाज टूट चुका है। अब वह भी शिवसेना को उसी की शैली में जवाब देने के लिए तैयार है। ऐसे में शिवसेना के सामने पहली चुनौती तो उसके नवनिर्वाचित विधायकों को संभालकर रखना ही है।

चुनाव परिणाम आने के बाद से ही शिवसेना अपने विधायकों को अलग-अलग होटलों में सामूहिक रूप से रखती आ रही है। आज भी उसके विधायक अंधेरी के एक पांचसितारा होटल में ही हैं। विधायकों को बचाने के अलावा उसके सामने दूसरी चुनौती मुंबई महानगरपालिका में अपनी सत्ता बचाने की भी है। शिवसेना की असली ताकत मुंबई महानगरपालिका में उसकी सत्ता ही मानी जाती है। यहां भाजपा सभासदों की संख्या उससे बहुत कम नहीं है। यदि भाजपा अजीत पवार सहित कुछ छोटे दलों की मदद से शिवसेना को चुनौती देने पर आमादा हो जाए तो शिवसेना के हाथ से मुंबई महानगरपालिका की सत्ता भी जा सकती है।

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