पेरिस में 13-18 अक्टूबर 2019 के बीच हुई एफएटीएफ (Financial Action Task Force/FATF) की बैठक में पाकिस्तान को फरवरी 2020 तक के लिए ग्रे-लिस्ट (FATF Grey list) में रखने का फैसला लिया था। इस फैसले से पाकिस्तान का नाखुश होना लाजिमी था। लेकिन, इस फैसले का सबसे ज्यादा असर चीन पर दिखाई दिया है। दरअसल, वह इस फैसले से बौखलाया हुआ है। इसी बौखलाहट की वजह से चीन की अनाप-शनाप बयानबाजी भी जारी है।
चीन का आरोप
चीन का आरोप है कि भारत और अमेरिका एफएटीएफ का राजनीतिकरण करने में लगे हुए हैं। लेकिन, चीन की सच्चाई उस वक्त होठों पर आ गई जब कहा गया कि यह दोनों मिलकर पाकिस्तान को एफएटीएफ के जरिए ब्लैकलिस्ट करने में लगे हुए हैं, जिसको वो कभी सफल नहीं होने देगा। यह बयान चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से दो दिन पहले ही दिया गया है।
क्या है इसकी सच्चाई
चीन के इस बयान को समझने के लिए और इन आरोपों की सच्चाई जांचने के लिए कुछ समय पहले का रुख करना जरूरी है। आपको याद होगा कि संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (UNGA) में भाषण देने से पूर्व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan Exclusive Interview) ने अलजजीरा और रशिया टुडे को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया था। इन दोनों ही इंटरव्यू में कही गई सभी बातें एक समान थीं। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान आरोप लगाया था कि भारत एफएटीएफ के जरिए पाकिस्तान को काली सूची में डालने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी के आस-पास उन्होंने चीन का दौरा भी किया था। इसकी वजह बेहद साफ थी। वह चाहते थे कि चीन किसी भी तरह से एफएटीएफ में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट (Blacklist Pakistan) होने से बचा ले। इमरान की जहां ये मंशा थी वहीं चीन के लिए भी यह किसी मजबूरी से कम नहीं था।
चीन की बौखलाहट के पीछे की वजह
दरअसल, चीन ने पाकिस्तान में सीपैक के जरिए अरबों का निवेश किया हुआ है। इसके अलावा भी चीन के कई प्रोजेक्ट पाकिस्तान में चल रहे हैं। इतना ही नहीं चीन ने अरबों डॉलर का कर्ज पाकिस्तान को दिया है, जिसका ब्याज चुकाना भी पाकिस्तान के लिए काफी महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसलिए ही वह लगातार वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के सामने कर्ज देने की गुहार लगा रहा है। ऐसे में यदि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट कर दिया तो चीन ने जो निवेश किया है और जो कर्ज पाकिस्तान को दिया है उसकी अदायगी खतरे में पड़ जाएगी। यह सौदा चीन के लिए काफी महंगा साबित होगा। लिहाजा चीन के पास में पाकिस्तान का साथ देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प फिलहाल नहीं बचा है। इस मामले में पाकिस्तान का हाल कुछ वही है जो आतंकी मसूद अजहर को यूएन के जरिए ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करवाने पर था। वहां पर चीन लगातार उसको बचाता रहा था, लेकिन अंत में चीन को घुटने टेकने ही पड़े थे।
ज्यादा देर नहीं चल सकेगी चीन-पाकिस्तान की जुगलबंदी
ऐसा ही कुछ इस बार भी होने वाला है। फिलहाल फरवरी 2020 तक का समय पाकिस्तान के पास है। फरवरी में जब एफएटीएफ की बैठक होगी तो यह जांच की जाएगी कि आखिर पाकिस्तान ने एफएटीएफ के तय मानकों में से कितने पूरे किए हैं। आपको बता दें कि एफएटीएफ की पेरिस में बैठक से पहले एशिया पेसेफिक ग्रुप की बैठक हुई थी, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान ने बताए 40 तय मानकों में से 32 को पूरा नहीं किया था। इस वजह से एपीजी ने पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने की संस्तुति की थी। बहरहाल, चीन ने फिलहाल पाकिस्तान को जरूर बचा लिया है, लेकिन जानकार मानते हैं कि चीन-पाकिस्तान की जुगलबंदी इस मामले में ज्यादा लंबी नहीं चलेगी।
गलतफहमी में चीन
हालांकि, चीन के विदेश मंत्रालय ने जिस तरह के बयान दिए हैं उससे वह अपने प्रयासों को लेकर काफी आश्वस्त लग रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय में एशिया मामलों के डिप्टी डायरेक्टर जनरल याओ वेन का कहना है कि अमेरिका और भारत जो कवायद पाकिस्तान को लेकर कर रहा है चीन उसके खिलाफ है। उनके मुताबिक चीन किसी भी सूरत से अमेरिका और भारत की इस मंशा को सफल नहीं होने देगा।
पाकिस्तान के प्रयासों की सराहना
याओ का कहना है कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ नेशनल एक्शन प्लान पर काम कर रहा है और चीन इसका समर्थन करता है। तुर्की और मलेशिया ने भी पाकिस्तान के प्रयासों की सराहना की है। उनका कहना था कि चीन और पाकिस्तान के रिश्ते वर्षों से काफी बेहतर रहे हैं। वहीं भारत से चीन के कई तरह के विवाद हैं जिसका असर आपसी रिश्तों पर भी पड़ा है और ये खराब हुए हैं।