बिक्रमगंज /रोहतास। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है और इस व्रत का महिलाओं को साल भर इंतजार रहता है। इस साल करवा चौथ का व्रत 17 अक्टूबर को मनाए जाने की तैयारी है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ के रूप में मनाए जाने की परंपरा है। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चांद निकलने तक रखा जाता है। शाम को चांद का दीदार करके अर्घ्य अर्पित करने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं। इस दिन चतुर्थी माता और गणेशजी की भी पूजा की जाती है।
करवा चौथ का महाभारत काल से है संबंध ।
करवाचौथ की सबसे पहले शुरुआत प्राचीन काल में सावित्री की पतिव्रता धर्म से हुई। सावित्री ने अपने पति मृत्यु हो जाने पर भी यमराज को उन्हें अपने साथ नहीं ले जाने दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से पति को फिर से प्राप्त किया। दूसरी कहानी पांडवों की पत्नी द्रौपदी की है। वनवास काल में अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि के पर्वत पर चले गए थे। द्रौपदी ने अुर्जन की जान बचाने के लिए अपने भाई भगवान कृष्ण से मदद मांगी। उन्होंने पति की रक्षा के लिए द्रौपदी से वैसा ही उपवास रखने को कहा जैसा माता पार्वती ने भगवान शिव की रक्षा के लिए रखा था। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और कुछ ही समय के पश्चात अर्जुन वापस सुरक्षित लौट आए।