25 अगस्त 1994 का दिन उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में दर्ज है। यह वो दिन था जब तिहाड़ जेल में बंद राज्य आंदोलनकारियों की रिहाई की मांग को लेकर छह युवा पौड़ी आडिटोरियम की छत पर चढ़े थे।

पौड़ी से दिल्ली तक सियासी सरगर्मी तेज हुई और आखिरकार तिहाड़ जेल में बंद आंदोलनकारियों को रिहा कर दिया गया। 25 अगस्त को राज्य आंदोलन के लिए हुए जन संघर्ष के पच्चीस साल पूरे हो गए।
आंदोलन के उस दौर में तकरीबन ढाई दशक पहले पृथक राज्य की मांग को लेकर लोक सभा में छलांग लगाने के आरोप में छात्र नेता मोहन पाठक और मनमोहन तिवारी को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया। इसकी भनक जैसे ही पहाड़ में फैली तो पौड़ी में 25 अगस्त 1994 को छात्र प्रदीप रावत, हेमेंद्र नेगी, सुनील नेगी, जगदीश, मनोज रावत, सुरेंद्र राणा आडिटोरियम की छत पर चढ़ गए और तिहाड़ में बंद आंदोलनकारियों की रिहाई न होने पर आत्मदाह की चेतावनी दी।
वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल बताते हैं कि आखिरकार जन आंदोलन के बाद तिहाड़ जेल से दोनों आंदोलनकारियों को 25 अगस्त 1994 को रिहा कर दिया गया। तो पौड़ी आडिटोरियम की छत पर चढ़े युवक भी नीचे उतारे गए, लेकिन पृथक राज्य के लिए लड़ी गई लड़ाई के लिए जन आंदोलन थमा नहीं।
आंदोलनकारी व मौजूदा पालिकाध्यक्ष यशपाल बेनाम, प्रदीप रावत बताते हैं कि 1994 का दौर पहाड़ी राज्य के लिए लड़ा गया था। राज्य तो मिला लेकिन जो स्वरुप इन वर्षों में यहां दिखना चाहिए था। वह आज भी दूर है। आंदोलनकारी कहते हैं कि राज्य निर्माण आंदोलन की भूमि रही पौड़ी इसमें सबसे ज्यादा उपेक्षित रही। जिससे आंदोलनकारी काफी आहत भी हैं।
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